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    29.7.20

    द्वितीय चरण- उग्रराष्ट्रवादी [मुस्लिम लीग,सूरत अधिवेशन एवं मार्ले-मिंटो सुधार]

                      -भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन-
               द्वितीय चरण- उग्रराष्ट्रवादी 
    उदारवादियों के बाद गरमपंथी राष्ट्रीय आंदोलन को आगे बढ़ाने का कार्य करते हैं उनके प्रमुख नेता लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक,बिपिन चन्द्र पाल(लाल-बाल-पाल) एवं अरविंद घोष थे।


    उग्रराष्ट्रवाद के उदय के कारण-
    1. नरमपंथियों की मांगों पर अंग्रेजों द्वारा गंभीरता से विचार ना करना- उदारवादियों की असफलता
    2. 1905 का बंगाल विभाजन
    3. 19वीं शताब्दी में पड़ने वाले भयंकर अकाल और ब्रिटिश सरकार द्वारा जारी शोषण।
    4. राजनीतिक शिक्षा एवं जागरूकता में बढ़ोत्तरी के कारण आत्मविश्वास एवं आत्मसम्मान में वृद्धि।
    5. बाह्य/विदेशी तत्वों का प्रभाव- 1896 में इथोपिया द्वारा इटली की पराजय,1905 में जापान द्वारा रूस की पराजय से सिद्ध हो गया की पश्चिमी ताकतें अजेय नहीं है।
    6. लॉर्ड कर्जन की प्रतिक्रियावादी नीतियां

    लक्ष्य एवं क्रियाकलाप-
    1. उग्रराष्ट्रवादियों ने ब्रिटिश शासन की आलोचना की तथा इन्हें ब्रिटिश न्यायप्रियता में भी कोई विश्वास नहीं था।
    2. इन्होंने उदारवादियों की नीतियों में अविश्वास प्रकट करते हुए अपने आंदोलन का मुख्य लक्ष्य "स्वराज" रखा।
    3. इन्होंने तीव्र आंदोलन ,हड़ताल ,जुलूस-प्रदर्शन आदि के माध्यम से अंग्रेजों के सामने चुनौतियां पैदा की।
    4. राष्ट्रीय आंदोलन को जन आंदोलन का रूप प्रदान करने की कोशिश की।
    5. बंगाल विभाजन के बाद, जहां नरमपंथी बंग-भंग आंदोलन, स्वदेशी एवं बहिष्कार के मुद्दे को बंगाल तक सीमित रखना चाहते थे वही गरमपंथी इसका विस्तार पूरे भारत में करना चाहते थे।

    अन्ततः उदारवादियों के स्थान पर उग्रराष्ट्रवादी आगे के राष्ट्रीय आंदोलन का संचालन करते हैं।

                          महत्वपूर्ण घटनाक्रम
    मुस्लिम लीग की स्थापना-
    अंग्रेज 'बांटो और राज करो" नीति के तहत हिंदू और मुस्लिमों के बीच तनाव पैदा कर राष्ट्रीय आंदोलन को कमजोर करना चाहते थी इसलिए वह कांग्रेस के विरुद्ध, मुस्लिम लीग की स्थापना में मुस्लिमों का सहयोग करते हैं।
    1. आगा खां के नेतृत्व में अक्टूबर 1906 में मुस्लिमों का एक प्रतिनिधिमंडल शिमला में वायसराय लार्ड मिंटो से मिलता है। लार्ड मिंटो ने आश्वासन दिया कि एक संप्रदाय के रूप में मुसलमानों के राजनीतिक अधिकारों और हितों की रक्षा का ध्यान रखा जाएगा।
    2. ढाका के नवाब सलीमुल्लाह खां के नेतृत्व में 30 दिसंबर 1906 को ढाका में आयोजित बैठक में 'मुस्लिम लीग' की स्थापना की गई,इसके प्रथम अध्यक्ष बकार उल मुल्क थे।
    3. मुस्लिम लीग की स्थापना का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजों के प्रति मुसलमानों में निष्ठा बढ़ाना, मुसलमानों के राजनीतिक अधिकारों की रक्षा करना तथा कांग्रेस का विरोध करना था।
    4. 1907 ई० में मुस्लिम लीग का वार्षिक अधिवेशन कराची में हुआ जहां मुस्लिम लीग का 'संविधान' बनाया जाता है।
    5. मुस्लिम लीग का प्रथम अधिवेशन 1908 में अमृतसर में हुआ जिसकी अध्यक्षता आगा खां ने की थी। इस अधिवेशन में मुसलमानों के लिए 'पृथक निर्वाचन मंडल' की मांग की गई।
    6. इस 'पृथक निर्वाचन मंडल' की मांग को अंग्रेजों द्वारा भारत शासन अधिनियम,1909 द्वारा स्वीकार कर लिया गया।
    7. मुस्लिम लीग का मुख्यालय 'लखनऊ' में था।

    कांग्रेस का सूरत अधिवेशन(1907 ई०)
    कांग्रेस के 1906 के कलकत्ता अधिवेशन में अध्यक्ष पद को लेकर नरमपंथियों एवं गरमपंथियों में विवाद उत्पन्न हो गया परंतु दादाभाई नौरोजी को अध्यक्ष बनाए जाने से दोनों गुटों में सहमति बन गई। 1906 के अधिवेशन में ही गरमपंथियों की मांग पर स्वदेशी, बहिष्कार ,राष्ट्रीय शिक्षा और स्वशासन ये 4 प्रस्ताव पारित किए गए।
    1. 1907 के सूरत अधिवेशन में अध्यक्ष पद को लेकर नरमपंथियों और गरमपंथियों में विवाद पुनः गहरा गया।
    2. गरमपंथी लाला लाजपत राय को कांग्रेस के सूरत अधिवेशन के अध्यक्ष बनाना चाहती थे, वहीं दूसरी तरफ नरमपंथी रासबिहारी घोष को अध्यक्ष बनाना चाहते थे।
    3. अन्तोगत्वा "रासबिहारी घोष" कांग्रेस सूरत अधिवेशन के अध्यक्ष बनाए जाते हैं। जिससे गरम पंथी नाराज हो जाते हैं तथा दोनों गुटों के बीच खुले संघर्ष के बाद कांग्रेस का 'पहला विभाजन' हो जाता है और गरमपंथी कांग्रेस से अलग हो जाते हैं।
    4. 1908 के इलाहाबाद अधिवेशन में बनाए गए कांग्रेस के नए संविधान के प्रावधानों के बाद गरमपंथियों का अगले 7 वर्षों तक कांग्रेस में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया जाता है।

    नोट:- 1907 का कांग्रेस अधिवेशन पहले सूरत के स्थान पर  नागपुर में आयोजित होने वाला था।

    भारत परिषद अधिनियम,1909
    1. इसे मार्ले-मिंटो सुधार के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि  तत्कालीन भारतीय सचिव मार्ले तथा वायसराय लॉर्ड मिंटो थे।
    2. इस अधिनियम के अंतर्गत सबसे महत्वपूर्ण पहलू मुसलमानों को "पृथक निर्वाचन मंडल" प्रदान करना था जिससे सांप्रदायिकता को बढ़ावा मिला। लॉर्ड मिंटो को सांप्रदायिक निर्वाचन का जनक कहा जाता है।
    3. इस अधिनियम द्वारा केंद्रीय तथा प्रांतीय विधान परिषदों के सदस्यों की संख्या में वृद्धि की जाती है।
    4. वायसराय की कार्यकारिणी में भारतीय सदस्य की नियुक्ति की व्यवस्था की गयी। 'सत्येंद्र सिन्हा' वायसराय की कार्यकारिणी में नियुक्त होने वाले प्रथम भारतीय थे।
    5. भारत सचिव की परिषद में भी भारतीयों को स्थान दिया गया। इसके अंतर्गत के.जी.गुप्ता तथा सैयद हुसैन बिलग्रामी को भारत सचिव की परिषद का सदस्य बनाया गया।
    6. भारतीयों को वार्षिक बजट पर बहस करने का अधिकार दे दिया परंतु वह मतदान नहीं कर सकते थे।

    परंतु इस अधिनियम ने भारत की मूलभूत समस्याओं और मांगों का समाधान प्रस्तुत नही किया।

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