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    5.7.20

    क्षेत्रीय राज्य एवं ब्रिटिश साम्राज्यवाद -(मैसूर राज्य)

    मैसूर राज्य- 

    1565 ई० में विजयनगर और दक्कन सल्तनतों के बीच तालीकोटा का युद्ध(राक्षसी-तगड़ी युद्ध) हुआ जिसमें विजयनगर साम्राज्य का पतन हो गया और इसके बाद कई स्वतंत्र राज्य अस्तित्व में आए जिनमें से एक महत्वपूर्ण राज्य मैसूर था।

    मैसूर राज्य में वाडयार वंश की स्थापना हुई। जिसका अंतिम राजा चिक्का कृष्णराज द्वितीय था इसके समय में नंदराज (राजस्व एवं वित्त मंत्री) और देवराज (सेनापति) के हाथों में वास्तविक सत्ता निहित थी और इन दोनों के नियंत्रण में ही मैसूर राज्य चल रहा था।
    हैदर अली जो कि प्रारंभ में नंदराज की सेना में एक साधारण सिपाही के रूप में भर्ती होता है और वह नंदराज की काफी मदद करता है तथा धीरे-धीरे अपनी योग्यता के बल पर अधिकारी के पद पर पहुंच जाता है। हैदर अली के द्वारा 1755 ई० में फ्रांसीसियों के सहयोग से डिंडीगुल में एक शस्त्रागार की स्थापना की जाती है।
    1760 ई० में हैदर अली नंदराज की हत्या कर मैसूर राज्य का शासक बन जाता है परंतु हैदर अली ने अपने को कभी भी बादशाह घोषित नहीं किया। हैदर अली के समय मैसूर शक्तिशाली राज्य हो गया था।
    मैसूर के पड़ोसी राज्यों में मराठा एवं निजाम शक्तियां विद्यमान थी जो मैसूर की बढ़ती शक्ति के प्रति आशंकित थे इसके साथ ही अंग्रेज भी इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा रहे थे जिसके कारण इन सभी से मैसूर के हित टकराते हैं और एक संघर्ष की स्थिति पैदा हो जाती है।
          -प्रथम आंग्ल- मैसूर युद्ध(1767- 69 ई०)-
    प्रारंभ में अंग्रेज, मराठा और निजाम के साथ मिलकर मैसूर पर आक्रमण करते हैं परंतु हैदरअली मराठों और निजाम को कूटनीति के बल पर और लालच देकर अपनी ओर मिला लेता है और इस प्रथम युद्ध में अंग्रेजो को बुरी तरह परास्त कर देता है और हैदर अली की विजय होती है इस युद्ध में हैदरअली ,मराठा और निजाम के साथ मद्रास तक पहुंच जाता है। जिससे अंग्रेजों को मजबूर होकर मद्रास की संधि करनी पड़ती है।
    मद्रास की संधि(1769 ई०):-
    इस संधि में यह तय हुआ कि-
    अंग्रेज तथा हैदर अली दोनों एक दूसरे के जीते हुए क्षेत्रों को छोड़ देंगे।
    ० हैदर अली,बंदी बनाये गए अंग्रेजो को रिहा करेगा।
    ० किसी संकट की स्थिति में दोनों एक दूसरे की सहायता करेंगे।
    ० अंग्रेज युद्ध हानि की क्षतिपूर्ति करेंगे।

           -द्वितीय आंग्ल- मैसूर युद्ध(1780- 84 ई०)-
    अंग्रेजों द्वारा मद्रास की संधि का उल्लंघन किया जाता है क्योंकि इसमें तय था कि अगर मैसूर पर कोई शक्ति हमला करती है तो अंग्रेज मदद करेंगे परंतु जब मराठों ने मैसूर पर आक्रमण किया तो अंग्रेजों ने कोई सहायता नहीं की, इसके अतिरिक्त अंग्रेज मैसूर द्वारा दिए गए फ्रांसीसी बंदरगाहों पर भी कब्जा करने की कोशिश करने लगे जिसके कारण अंग्रेजों और हैदर अली के बीच द्वितीय आंगल मैसूर युद्ध प्रारंभ हो जाता है।
    इस युद्ध में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व आयरकूट द्वारा किया जाता है। पोर्टोनोवा के युद्ध में सन 1782 ई० में हैदर अली की मृत्यु हो जाती है उसके बाद उसका पुत्र टीपू सुल्तान नेतृत्व संभालता है। इसके 2 वर्ष बाद सन 1784 में मंगलौर की संधि द्वारा इस युद्ध का अंत हो जाता है यह लगभग बराबरी का युद्ध था जिसमें न अंग्रेज़ विजयी होते हैं न मैसूर। इस युद्ध के समय गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स होता है।

    टीपू सुल्तान(1782- 99 ई०)-

    टीपू सुल्तान 1782 में मैसूर का शासक बनता है एक योग्य एवं पढ़ा लिखा का शासक था जिसने शासक बनने के बाद कई नए प्रयोग किए  जैसे-  नई मुद्रा का चलन, नए संवत को प्रारंभ करना, नई माप तौल की इकाई का प्रारंभ आदि।
    ० सन 1787 ई० में टीपू स्वयं को बादशाह घोषित करता है।
    ० टीपू सुल्तान ने फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित होकर श्रीरंगपट्टनम में जैकोबिन क्लब की स्थापना की तथा उसका सदस्य भी बना।
    ० टीपू ने श्रीरंगपट्टनम में स्वतंत्रता का वृक्ष लगाया जो प्रांत और मैसूर की मित्रता का प्रतीक था।
    ० टीपू ने विदेशी राज्यों जैसे कुस्तुनतुनिया,फ्रांस, मारीशस,काबुल आदि से संबंध स्थापित करने के लिए अपने दूतों को वहां भेजा था।
    ० टीपू ने श्रृंगेरी मठ को संरक्षण प्रदान किया था।
    ० 1796 ई० में टीपू सुल्तान ने एक नौसेना बोर्ड का गठन किया तथा राइफलों की एक फैक्ट्री खोली।
    ० टीपू ने फ्रेंच दूतावास का निर्माण भी करवाया था।
    थॉमस मुनरो ने टीपू सुल्तान द्वारा किये गये नए प्रयोगों के कारण उसे "अशांत आत्मा" कहा है।

           -तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध(1790- 92 ई०)-
    टीपू सुल्तान शासक बनने के बाद अपने सैन्य विस्तार की योजना पर कार्य कर रहा होता है ,इसके अंतर्गत वह विदेशी राज्यों फ्रांस तथा कुस्तुनतुनिया का समर्थन लेने की कोशिश करता है जिसके कारण अंग्रेज उसकी नीतियों से नाराज हो जाते हैं और तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध होता है इस समय गवर्नर जनरल लार्ड कार्नवालिस था।
    इस युद्ध में अंग्रेजी सेना कार्नवालिस के नेतृत्व में वेल्लोर, अंबुर और बंगलौर को जीत लेती है तथा टीपू सुल्तान की राजधानी श्रीरंगपट्टनम को घेर लिया जाता है ऐसी स्थिति में टीपू सुल्तान संधि करने पर विवश हो जाता है।
    श्रीरंगपट्टनम की संधि(1792 ई०)-
    ० इस संधि के द्वारा तृतीय आंग्ल- मैसूर युद्ध का अंत हो जाता है।
    ० टीपू सुल्तान के लिए यह एक अपमानजनक संधि थी जिसके अंतर्गत उसे अपने राज्य का लगभग आधा भाग अंग्रेजों को देना पड़ता है।
    3 करोड रुपए हर्जाने के रूप में अंग्रेजों को देना था जब तक वह यह रुपए अंग्रेजों को नहीं देगा तब तक उसके दो पुत्र अंग्रेजो के कब्जे में रख लिए गए।
    इसके अतिरिक्त उसके राज्य के कुछ भाग अंग्रेजों द्वारा मराठो एवं निजाम को दे दिए जाते हैं क्योंकि इस युद्ध में मराठों तथा निजाम ने अंग्रेजों की सहायता की थी। इसी युद्ध के संदर्भ में कार्नवालिस का प्रसिद्ध कथन है कि "इस युद्ध में हमने अपने मित्रों को भी अधिक शक्तिशाली नहीं होने दिया और शत्रु को भी पराजित कर दिया"।

            -चतुर्थ आंग्ल- मैसूर युद्ध(1799 ई०)-
    टीपू सुल्तान अंग्रेजों से अपने अपमान का बदला लेना चाहता था जिससे उसने फ्रांस के साथ अपने संबंध बढ़ाने प्रारंभ कर दिए। इसी समय लार्ड वेलेजली भारत का गवर्नर जनरल था जो सहायक संधि के द्वारा भारतीय राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर उन्हें अपने अधिकार में लेने की योजना पर कार्य कर रहा था। उसने सहायक संधि का प्रस्ताव टीपू सुल्तान के सामने रखा जिसे टीपू सुल्तान ने ठुकरा दिया
    इस बात से नाराज होकर अंग्रेजी सेना ने मराठों और निजाम के साथ मिलकर मैसूर पर आक्रमण कर दिया और इस युद्ध में 1799 ईस्वी में लड़ते हुए टीपू सुल्तान की श्रीरंगपट्टनम में मृत्यु हो जाती है।
    टीपू सुल्तान की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने मैसूर के ऊपर 1799 में ही सहायक संधि थोप दी और वाडयार वंश के अल्पव्यस्क व्यक्ति को मैसूर का नया शासक बना दिया।

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