सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन(भाग-2)
19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मुस्लिम समाज में सुधार संबंधी आंदोलनों की शुरुआत होती है मुस्लिमों में सुधार आंदोलन के प्रणेता सर सैयद अहमद खां थे जिन्होंने पाश्चात्य शिक्षा ग्रहण कर मुस्लिम धर्म में व्याप्त दोषों को दूर करने तथा मुस्लिमों में शिक्षा के प्रसार पर बल दिया।
-सर सैयद अहमद खां और अलीगढ़ आंदोलन-
० सर सैयद ने मुस्लिम समाज में पाश्चात्य एवं आधुनिक शिक्षा के प्रसार के लिए व्यापक आंदोलन चलाया।
० इसके साथ ही सर सैयद ने इस बात पर भी बल दिया कि मुस्लिमों एवं अंग्रेजों के संबंध ठीक बने रहें ताकि मुस्लिमों के विकास में बाधा उत्पन्न ना हो।
० 1864 में इन्होंने "साइंटिफिक सोसायटी" की स्थापना की।
० 1870 में इन्होंने अपने विचारों के प्रचार के लिये फारसी भाषा में "तहजीब-उल-अखलाक"( सभ्यता और नैतिकता) नामक पत्रिका निकाली।
० सर सैयद ने 1875 में अलीगढ़ में मोहम्डन एंग्लो ओरिएंटल स्कूल की स्थापना की जिसे 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के नाम से जाना गया। इससे अलीगढ़ आंदोलन को एक ठोस आधार मिलता है।
० सर सैयद जीवन के प्रारंभिक दौर में राष्ट्रवादी थे परंतु धीरे-धीरे वह मुस्लिम हितों की पैरवी करते हुए इससे दूर चले गए तथा कांग्रेस की स्थापना के समय इन्होंने कांग्रेस को हिंदुओं का संगठन बताया तथा कांग्रेस के विरोध में इन्होंने 1888 में "यूनाइटेड इंडियन पैट्रियोटिक एसोसिएशन" की स्थापना की।
० सर सैयद ने 1857 की क्रांति पर "असबाब-ए-बगाबत-ए-हिंद" नामक पुस्तक लिखी थी।
अहमदिया आंदोलन-
० इस आंदोलन की शुरुआत 1889 में पंजाब के गुरदासपुर में मिर्ज़ा गुलाम अहमद ने की थी।
० मिर्ज़ा गुलाम अहमद स्वयं को "पैगंबर" तथा "पुनर्जागरण का वाहक" कहते थे।
० यह आंदोलन उदारवादी सिद्धांतों पर आधारित था जिसका मुख्य उद्देश्य भारत में शुद्ध इस्लाम की स्थापना करना था।
० मूल रूप से यह आंदोलन इस्लाम धर्म का आंतरिक विद्रोह था तथा इसने जेहाद का विरोध किया था।
० मिर्ज़ा गुलाम अहमद ने 1890 में "बहरीन- ए-अहमदिया" नामक पुस्तक लिखी थी।
० मिर्ज़ा गुलाम अहमद ने स्वयं को कृष्ण का अवतार भी बताया।
देवबंद आंदोलन-
० यह आंदोलन अलीगढ़ आंदोलन के विपरीत एक रूढ़िवादी आंदोलन था जो मुस्लिमों में अंग्रेजी शिक्षा का विरोध करता था।
० इस आंदोलन की शुरुआत सहारनपुर के देवबंद(उत्तरप्रदेश) में मोहम्मद कासिम ननौती तथा राशिद अहमद गंगोही नामक दो उलेमाओं ने की इन्होंने 1866 में देवबंद में एक मदरसा खोला।
० इस आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य मुसलमानों में कुरान की शुद्ध शिक्षा का प्रसार करना तथा अंग्रेजो के खिलाफ जेहाद की भावना पैदा करना था।
० इस आंदोलन ने कांग्रेस की स्थापना का समर्थन किया था।
० इस आंदोलन के समर्थकों में अरबी फ़ारसी के विद्वान शिबली नूमानी का नाम महत्वपूर्ण है जिन्होंने 1885 में लखनऊ में दारुल उलूम की स्थापना की थी तथा यह हिंदू-मुस्लिम एकता के समर्थक थे।
मोहम्डन लिटरेरी सोसाइटी-
० इसकी स्थापना कलकत्ता में 1863 में अब्दुल लतीफ ने की थी।
० इसका प्रमुख उद्देश्य शोषित, वंचित एवं पिछड़े मुसलमानों में शिक्षा का प्रचार करना तथा उन्हें समाज में एक सम्मानजनक स्थान दिलाना था।
० अब्दुल लतीफ को "बंगाल के मुस्लिम पुनर्जागरण का पिता" कहा जाता है।
-पारसी समाज एवं धर्म सुधार आंदोलन-
1.पारसियों में समाज एवं धर्म सुधार की शुरुआत 19वीं शताब्दी के मध्य में बम्बई से होती है जब 1851 में नौरोजी फरदोनजी ,दादा भाई नौरोजी तथा एस. एस. बंगाली ने "रहनुमाई मजदायसन समाज" की स्थापना की जाती है।
2. रहनुमाई मजदायसन समाज ने धार्मिक कट्टरवादिता एवं रूढ़िवादिता पर प्रहार किया तथा पारसी समाज को आधुनिक बढ़ाने हेतु पाश्चात्य शिक्षा एवं पाश्चात्य जीवन शैली अपनाने पर बल दिया।
3. इस समाज ने स्त्री समानता तथा स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहित किया।
4. रहनुमाई मजदायसन समाज के प्रयासों का ही फल था कि पारसी लोग सामाजिक तौर पर सर्वाधिक आधुनिक वर्ग में सम्मिलित हो गए।
5. इस समाज ने अपने विचारों के प्रचार के लिए गुजराती भाषा में एक साप्ताहिक पत्र "रस्त गोफ्तार" प्रकाशित किया।
6. पारसी सुधारक बी.एम.मालाबारी ने बाल विवाह के विरुद्ध 1891 में आंदोलन चलाया जिससे "एज आफ कंसेंट एक्ट" पारित किया गया जिसके अंतर्गत 12 वर्ष से कम आयु की लड़की का विवाह को निषेध किया गया।
-सिख सुधार आंदोलन-
1. 19वीं शताब्दी के अंत में सिख समाज एवं धर्म सुधार आंदोलन की शुरुआत होती है ,जब अमृतसर में खालसा कॉलेज की स्थापना की जाती है। जिसके माध्यम से सिख समाज में शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर बल दिया जाता है।
2. 1920 में प्रारंभ हुए अकाली आंदोलन का मुख्य उद्देश्य गुरुद्वारों के प्रबंधन में सुधार करना था जिसके अंतर्गत गुरुद्वारों से उन भ्रष्ट महंतो को बाहर करना था जो गुरुद्वारा की संपत्ति का अपने निजी हित में तथा मनमाने ढंग से प्रयोग करते थे।
3. इन स्वार्थी महंतों के खिलाफ 1921 में जनता ने विद्रोह कर अहिंसात्मक सत्याग्रह आंदोलन चलाया।
4. इसके परिणाम स्वरूप 1922 में "सिख गुरद्वारा कमेटी एक्ट" पारित हुआ जिसमे 1925 में संशोधन कर इन भ्रष्ट महंतों को गुरुद्वारों से बाहर कर दिया गया जिससे गुरुद्वारों के प्रबंधन का शुद्धिकरण हो सका।
नोट:- निरंकारी आंदोलन, नामधारी आंदोलन तथा सिंह सभा आंदोलन सिख धर्म के सुधार से जुड़े हुए थे।
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