मौर्योत्तर काल(185 ई०पू०- 300 ई०)
मौर्य काल राजनीतिक एकता एवं केंद्रीकृत शासन का काल था परंतु मौर्योत्तर काल में अनेक क्षेत्रीय शक्तियों का उदय होता है जिसमें कुछ देशी शक्तियां जैसे शुंग,कण्व,सातवाहन,चेदि आदि थी जबकि कुछ विदेशी शक्तियां भी दिखाई देती हैं जैसे हिंद-यवन, शक, पहलव, कुषाण प्रमुख थी।
शुंग वंश(185- 75 ई०पू०)
मौर्य वंश का अंतिम शासक बृहद्रथ था, जिसकी हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्वारा करके 185 ई० पू० में शुंग वंश की स्थापना की गई।
पुष्यमित्र शुंग(185- 149 ई० पू०)
1. यह शुंग वंश का संस्थापक था।
2. इसने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से स्थानांतरित करके विदिशा को बनाया।
3. इसने हिंद यूनानी शासक मिनांडर को पराजित किया था।
4. पुष्यमित्र के बारे में अयोध्या अभिलेख से जानकारी मिलती है यह अभिलेख पुष्यमित्र के राज्यपाल धनदेव का है।
5. इस अभिलेख से पता चलता है की पुष्यमित्र ने 2 अश्वमेघ यज्ञ किये थे।महर्षि पतंजलि(पुष्यमित्र के पुरोहित) ने इन यज्ञों को करवाया था।
6. बौद्ध धर्म के अनुसार पुष्यमित्र ने बौद्ध स्तूपों एवं भिक्षुओं को बहुत क्षति पहुंचायी। परन्तु इसने सांची में 2 स्तूपों का निर्माण तथा भरहुत का स्तूप बनवाया था।
7. पुष्यमित्र ब्राह्मण धर्म का समर्थक था, इसे ब्राह्मण धर्म /वैदिक धर्म के पुनः उद्धारक के रूप में जाना जाता है।
- पुष्यमित्र के बाद उसका पुत्र अग्निमित्र, शुंग वंश का राजा हुआ।
नोट:- कालिदास ने अपनी रचना मालविकाग्निमित्र में मालविका और अग्निमित्र के प्रेम एवं विवाह का वर्णन किया है।
- शुंग वंश के राजा वसुमित्र के समय भी यवनों का आक्रमण होता है और वसुमित्र इन्हें पराजित करता है।
- राजा भगभद्र के दरबार में हिन्द यवन शासक एण्टियालकिड्ज ने अपने दूत हेलियोडोरस को भेजा था जिसने विदिशा में गरुड़ स्तम्भ का निर्माण करवाया था।
- शुंग वंश का अंतिम राजा देवभूति था जिसकी हत्या इसके अमात्य वसुदेव ने की थी।
नोट:- मनु स्मृति की रचना शुंग वंश के समय ही हुई थी।
-कण्व वंश(75 - 30 ई०पू०)-
1. इस वंश का संस्थापक वसुदेव था जिसने शुंग वंश के अंतिम राजा देवभूति की हत्या करके कण्व वंश की स्थापना की थी।
2. इन वंश का अंतिम राजा सुशर्मा था।
3. कण्व वंश के शासक ब्राह्मण धर्म के संरक्षक थे।
4. इस समय तक साम्राज्य पाटलिपुत्र के आस पास तक की सीमित हो गया था।
-सातवाहन वंश(30 ई०पू०- 250 ई०)-
1. इस वंश का संस्थापक सिमुक था।
2. सातवाहन साम्राज्य आधुनिक महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के कृष्णा तथा गोदावरी क्षेत्र में फैला हुआ था। इन्हें आंध्र सातवाहन भी कहा जाता है।
3. इनकी राजधानी प्रतिष्ठान(महाराष्ट्र) में थी।
4. शातकर्णि प्रथम ने कलिंग नरेश खारवेल को पराजित किया था तथा शातकर्णि प्रथम को ही इस वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
० इनकी पत्नी नागानिका के "नानाघाट अभिलेख" से बौद्ध भिक्षुओं एवं ब्राह्मणों को भूमि दान देने की जानकारी मिलती है।यह भूमिदान का पहला अभिलेखीय साक्ष्य है।
० शातकर्णी प्रथम ने 2 अश्वमेघ तथा 1 राजसूय यज्ञ करवाया था।
6. इस वंश के शासक राजा 'हाल' प्राकृत भाषा के विद्वान थे जिन्होंने गाथासप्तशती की रचना की थी। इनके सेनापति विजयानंद ने श्रीलंका को जीता था। हाल के दरबार में गुणाढ्य नामक विद्वान रहता था जिसने बृहत्कथा की रचना की थी।
7. सातवाहन वंश का सबसे प्रमुख एवं प्रतापी शासक "गौतमीपुत्र शातकर्णि" था। इसके विषय में जानकारी इसकी माता गौतमीपुत्र के नासिक अभिलेख से मिलती है।
० इसने शक शासक नहपान को पराजित किया था।इसके उपलक्ष्य में उसने नहपान के चांदी के सिक्कों पर अपना नाम अंकित करवाया, ऐसे सिक्के जोगलथंबी(नासिक) से प्राप्त हुए हैं।
० इसने एकमात्र ब्राह्मण,अद्वितीय ब्राह्मण और राजराज जैसी उपाधियां धारण की।
० इसने बौद्धसंघ को अज्काल्कीय क्षेत्र दान में दिया था।
8. वशिष्ठी पुत्र पुलवामी, गौतमीपुत्र का उत्तराधिकारी हुआ।
० इसने आंध्रभोज तथा आंध्रसागर की उपाधि धारण की।
० शक राजा रुद्रदामन ने पुलवामी को 2 बार पराजित किया था।
महत्वपूर्ण तथ्य-
० सातवाहनों के समय ही सामंती व्यवस्था का प्रारंभिक रूप दिखाई देता है क्योंकि भूमि दान की प्रथा यही से प्रारंभ होती है।
० सातवाहनों ने सर्वाधिक मात्रा में शीशे के सिक्के चलवाये, इसके अतिरिक्त चांदी,कांसे आदि के सिक्के भी चलाये।
० इस समय राजा के नाम के पहले माता का नाम लिखा जाता था अतः कहा जा सकता है कि समाज मातृसत्तात्मक था परंतु राजा हमेशा पुरुष ही बनता था इस दृष्टि से यह पितृसत्तात्मक दिखाई देता है।
० इस समय ही कार्ले चैत्य का निर्माण हुआ था।
० सात वाहनों के समय प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि का प्रयोग किया जाता था।
० अमरावती कला का विकास भी सातवाहनों के समय ही हुआ।
० सातवाहन राजा वैदिक/ब्राह्मण धर्म के अनुयायी थे।
-कलिंग का चेदि वंश-
1. चेदि वंश का उदय सातवाहनों के समय कलिंग में होता है तथा इसे महामेघवाहन वंश भी कहा जाता है।
2. चेदि वंश के विषय में जानकारी उड़ीसा की उदयगिरि पहाड़ियों से प्राप्त राजा खारवेल के हाथीगुंफा अभिलेख से होती है। यह कलिंग राज्य वर्तमान के उड़ीसा प्रांत में फैला हुआ था।
3. इस वंश का सबसे महान शासक खारवेल था।
4. खारवेल ने मगध पर आक्रमण कर उस पर विजय प्राप्त की और यहां से "जिन शीतलनाथ" की प्रतिमा को कलिंग ले गया।यह प्रतिमा पहले महापदमनंद द्वारा कलिंग से मगध ले जाई गई थी।
5. हाथीगुंफा अभिलेख से पता चलता है कि खारवेल ने तनसुलि से कलिंग तक एक नहर का निर्माण करवाया था यह नहरों से संबंधित प्रथम अभिलेखीय साक्ष्य है।
6. खारवेल जैन धर्म का अनुयायी था।
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