राष्ट्रीय आंदोलन- द्वितीय चरण
[होमरूल आंदोलन, मांटेग्यू घोषणा तथा भारत शासन अधिनियम 1919]
होमरूल लीग आंदोलन-
होमरूल का तात्पर्य होता है स्वशासन अथवा स्वराज्य। भारत में होमरूल लीग की स्थापना का विचार आयरिश महिला श्रीमती एनी बेसेंट ने दिया था। एनी बेसेंट एक आयरिश महिला थी तथा उनकी रूचि भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में थी और वह आयरलैंड में अंग्रेजों के विरुद्ध चलाए गए होमरूल लीग आंदोलन की तरह भारत में भी होमरूल आंदोलन चलाना चाहती थी ताकि भारत को ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन स्वशासन की प्राप्ति हो सके।
पृष्ठभूमि:-
1907 के सूरत विभाजन के बाद कांग्रेस पर उदारवादियों का प्रभुत्व हो गया एवं उनकी सक्रियता राष्ट्रीय आंदोलन में कम हो जाती है और कांग्रेस का शक्तिहीन हो जाती है दूसरी तरफ 1908 में बाल गंगाधर तिलक को गिरफ्तार कर 6 वर्ष के लिए मांडले(बर्मा) जेल की सजा हो जाती है। इन परिस्थितियों में राष्ट्रीय आंदोलन की गति धीमी पड़ जाती है। 1914 में बाल गंगाधर तिलक जेल से रिहा होकर भारत पहुंचते हैं तथा एनी बेसेंट होमरूल लीग आंदोलन चलाए जाने के लिये तिलक से मिलती है और बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट मिलकर अंग्रेजो के खिलाफ होमरूल लीग आंदोलन चलाते हैं।
होमरूल लीग के उद्देश्य:-
1. भारत में "स्वराज' की स्थापना करना।
2. ब्रिटिश सरकार में भारतीयों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व बढ़ाया जाए।
3. राष्ट्रीय आंदोलन को गति प्रदान करना।
4. लोगों के बीच राजनीतिक शिक्षा को प्रोत्साहित करना।
इस प्रकार होमरूल लीग का उद्देश्य भारत को पूर्ण स्वतंत्रता दिलाना नहीं था बल्कि संवैधानिक तरीके से ब्रिटिश शासन के अधीन स्वशासन की प्राप्ति था।
इंडियन होमरूल लीग-
1. इसकी स्थापना बाल गंगाधर तिलक ने अप्रैल 1916 में पुणे में की जिसका अध्यक्ष जोसेफ बैपटिस्टा को बनाया गया।
2. इसका प्रमुख लक्ष्य स्वराज, शिक्षा प्रसार तथा भाषा के आधार पर प्रान्तों का गठन रखा।
3. तिलक की होमरूल लीग का कार्यक्षेत्र कर्नाटक, महाराष्ट्र(मुंबई को छोड़कर), मध्य प्रांत एवं बरार था।
4. तिलक ने होमरूल आंदोलन का प्रचार अपने समाचार पत्रों मराठा(अंग्रेजी में प्रकाशित) और केसरी(मराठी में प्रकाशित) के माध्यम से किया।
5. तिलक ने इसी समय अपना प्रसिद्ध नारा दिया- "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और इसे मैं लेकर रहूंगा।"
वैलेंटाइन शिरोल ने अपनी पुस्तक 'इंडियन अनरेस्ट' में तिलक को भारतीय अशांति का जनक कहा इसलिए तिलक शिरोल पर मान-हानि का मुकदमा दायर करने के लिए लंदन चले जाते हैं।
ऑल इंडिया होमरूल लीग:-
1. तिलक के होमरूल लीग के 5 माह बाद सितंबर 1916 में एनी बेसेंट ने ऑल इंडिया होमरूल लीग की स्थापना मद्रास में की।
2. इस होमरूल लीग के संगठन सचिव जार्ज अरुंडेल थे। मजदूर नेता वी.पी.वाडिया भी इस लीग में नेतृत्व की भूमिका में थे।
3. एनी बेसेंट के होमरूल लीग का कार्य क्षेत्र, तिलक के कार्य क्षेत्र को छोड़कर संपूर्ण भारत था। बेसेंट के होमरूल लीग की सर्वाधिक शाखाएं मद्रास में थी।
4. एनी बेसेंट ने अपने पत्रों कॉमनवील(जनवरी 1914) और न्यू इंडिया(जुलाई 1914) के द्वारा इसका प्रचार प्रसार किया।
5. एनी बेसेंट के होमरूल लीग की सदस्यता मोतीलाल नेहरू जवाहरलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना, मदन मोहन मालवीय एवं तेज बहादुर सप्रू आदि नेताओं ने ग्रहण की।
6. 1917 में अरुंडेल,वाडिया और बेसेंट को गिरफ्तार कर लिया जाता है जिसके विरोध में सुब्रमण्यम अय्यर ने अपनी नाइटहुड की उपाधि त्याग दी।
निष्कर्ष/परिणाम:-
1. 1918 में तिलक तथा एनी बेसेंट के होमरूल लीग का आपस में विलय हो जाता है।
2. मांटेग्यू घोषणा के बाद होमरूल लीग आंदोलन समाप्त हो गया।
3. होमरूल लीग आंदोलन का सबसे बड़ा महत्व इस बात में है कि इसने राष्ट्रीय आंदोलन को एक नई दिशा प्रदान की तथा राष्ट्रीय नेताओं की नई पीढ़ी सामने आई।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य:-
1. सर्वेंट ऑफ़ इंडिया सोसाइटी (इसकी स्थापना गोपाल कृष्ण गोखले ने 1905 में की थी) के सदस्यों को होमरूल लीग से जुड़ने की अनुमति नहीं थी।
2. होमरूल लीग आंदोलन के बाद राजनीतिक क्षेत्र में उदारवादी नेताओं का प्रभाव खत्म हो गया तथा कांग्रेस पर उग्रवादी नेताओं का प्रभाव बढ़ गया।
3. एनी बेसेंट फेबियन आंदोलन की प्रस्तावक थी तथा इन्होंने "भगवद गीता" का अनुवाद अंग्रेजी में किया था।
माण्टेग्यू घोषणा-1917
होमरूल लीग आंदोलन तथा भारतीय जनता के दबाव स्वरूप भारत सचिव मांटेग्यू द्वारा 20 अगस्त 1917 को 'हाउस आफ कॉमन्स' में घोषणा की गई कि ब्रिटिश शासन का उद्देश्य भारत में स्वशासी संस्थाओं का क्रमिक रूप से विकास करना है अर्थात भारत में एक उत्तरदायी सरकार की स्थापना की जाएगी। जिसके अंतर्गत भारतीय शासन में भारतीयों की भागीदारी को बढ़ाया जाएगा।
एनी बेसेंट ने मांटेग्यू घोषणा का स्वागत किया क्योंकि इससे उनके होमरूल आंदोलन का उद्देश्य पूरा हो गया था।
मांटेग्यू घोषणा के बाद 1918 में मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार रिपोर्ट आयी जो 1919 के मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार का आधार बनती है।
-भारत शासन अधिनियम 1919-
इसे मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार भी कहा जाता है। इसकी प्रस्तावना की घोषणा मांटेग्यू- चेम्सफोर्ड ने 20 अगस्त 1917 को की इसलिए इसे अगस्त घोषणा पत्र के नाम से भी जाना जाता है स्थानीय स्वशासन की दिशा में क्रमिक विकास करने हेतु या भारत में उत्तरदायी सरकार की स्थापना हेतु ब्रिटिश संसद ने इस अधिनियम को पारित किया।
इसकी कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित है-
1. केंद्रीय विधानमंडल को द्विसदनात्ममक बनाया गया जिसमेंं निम्न सदन को 'केंद्रीय विधानसभा' कहा गया, इसका कार्यकाल 3 वर्ष था तथा इसमें 145 सदस्य थे जिसमें 104 निर्वाचित तथा 41 मनोनीत सदस्य थे। उच्च सदन को 'राज्य परिषद' कहा गया इसका कार्यकाल 5 वर्ष था तथा इसमें कुल 60 सदस्य थे जिसमें से 34 निर्वाचित व 26 मनोनीत सदस्य थे।
2. प्रांतीय विधान मंडल के सदस्य प्रांतों की जनता के द्वारा सीधे चुनकर आने लगे अतः प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली की शुरुआत हुई।
3. प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली लागू की गई तथा प्रांतीय सूची के विषयोंं को दो भागों में बांटा गया एक आरक्षित भाग- इसमें अधिक महत्वपूर्ण विषय रखे गए जिन पर कानून बनाने का अधिकार गवर्नर और उसकी कार्यकारिणी के सदस्यों को था जैसे वित्त, पुलिस आदि दूसरा हस्तांतरित भाग- इसमें ऐसे विषय रखे गए जो कम महत्वपूर्ण थे और जिस पर कानून बनाने का अधिकार भारतीय मंत्रियों को था लेकिन यह मंत्री अपने बनाए हुए कानूनों को गवर्नर के हस्ताक्षर के बिना लागू नहीं कर सकते थे गवर्नर चाहता तो इसे वीटो भी कर देता था इस भाग में शिक्षा ,सड़क, सफाई, स्थानीय स्वशासन जैसे विषय रखे गए।
नोट:- द्वैध शासन प्रणाली के जनक लिओनेल कर्टिस थे। द्वैध शासन प्रणाली की समीक्षा के लिए 'मूडीमैन कमेटी' का गठन किया गया था।
4. सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का विस्तार कर सिखों के लिए भी पृथक निर्वाचन प्रणाली बनायी गई।
5. भारत के लिए एक हाई कमिश्ननर या उच्चायुक्त की नियुक्ति की गई, प्रथम हाई कमिश्नर विलियम म्योर थे।
6. इस एक्ट द्वारा भारत में सर्वप्रथम एक लोक सेवा आयोग, महालेखाकार और लोक लेखा समिति के गठन का भी प्रावधान था।
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