पारिस्थितिक अनुक्रमण(Ecological Succession)-
पारिस्थितिक अनुक्रमण एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत एक जैविक समुदाय द्वारा दूसरे जैविक समुदाय को प्रतिस्थापित कर दिया जाता है।वास्तव में यह प्रकृति में होने वाली ऐसी क्रिया है जिसमे जैविक एवं अजैविक घटक दोनों ही भाग लेते हैं।पारिस्थितिक अनुक्रमण के अंतिम चरण में जो जैविक समुदाय अस्तित्व में आता है उसे चरम समुदाय कहा जाता है।
पारिस्थितिक अनुक्रमण विभिन्न अवस्थाओं से होकर गुजरता है इन अवस्थाओं को सेरे कहा जाता है।पारिस्थितिक अनुक्रमण 2 प्रकार का होता है-
1. प्राथमिक अनुक्रमण
2. द्वितीयक अनुक्रमण
प्राथमिक अनुक्रमण
यह अनुक्रमण उन क्षेत्रों में प्रारंभ होता है जो जीवनरहित होते हैं उदाहरण के लिये लावा भूमि,चट्टानी भागों,डेल्टाई भागों या हिमनद के पीछे हटने से प्राप्त नग्न भूमि आदि क्षेत्रों में प्राथमिक अनुक्रमण प्रारंभ होता है। प्रारंभ में यहाँ किसी भी मृदा निर्माणक प्रक्रम के अभाव में मृदा की अनुपस्थिति के कारण पेड़ पौधों के विकास के लिए अनुकूल दशाएं नही होती हैं इसलिये सर्वप्रथम इन चट्टानों पर लाइकेन,मॉस,बैक्टीरिया या सूक्ष्मजीव आदि के द्वारा जीवन प्रारंभ होता है इन प्रारंभिक समुदायों को 'पॉयनियर कम्युनिटी(अग्रणी समुदाय)' कहा जाता है।इस प्रारंभिक समुदाय की वृद्धि दर बहुत तेज होती है तथा यह अन्य समुदायों के लिये आधार का कार्य करता है। अग्रणी समुदाय के बाद यहाँ अन्य मिश्रित समुदायों का आगमन होता है फिर धीरे-धीरे क्रमिक रूप से एक पूर्ण विकसित जैविक समुदाय अस्तित्व में आता है जिसे(Climax community) चरम समुदाय कहते हैं।
द्वितीयक अनुक्रमण
जिन क्षेत्रों में पहले जैविक समुदाय का विकास हो चुका था परंतु प्राकृतिक या मानवीय आपदाओं जैसे- भूकम्प,ज्वालामुखी विस्फोट,परमाणु विस्फोट या बाढ़ आदि के कारण वनस्पति एवं जीव-जन्तु पूर्ण रूप से या आशिंक रूप से नष्ट हो गए हो और वहां पर पुनः जैविक समुदाय का विकास हो जाए तो इसे द्वितीयक अनुक्रमण कहा जाता है।
प्राथमिक और द्वितीयक अनुक्रमण में अंतर-
1. प्राथमिक अनुक्रमण दीर्घकालिक होता है जबकि द्वितीयक अनुक्रमण में प्रथम की अपेक्षाकृत कम समय लगता है।
2. प्राथमिक अनुक्रमण जीवनरहित क्षेत्रो से प्रारम्भ होता है जबकि द्वितीयक में पहले जीवन के विनाश के बाद प्रारंभ होता है।
3. प्राथमिक में प्रारंभ में ह्यूमस अनुपस्थित होता है क्योंकि वहां मृदा नही होती, जबकि द्वितीयक में ह्यूमस उपस्थित होता है क्योंकि ये पहले के जैविक समुदाय के अवशेष एवं अपघटन से प्रारंभ होता है।
4. प्राथमिक अनुक्रमण में प्रारंभ में वातावरण प्रतिकूल होता है जबकि द्वितीयक में प्रारंभ से वातावरण अनुकूल होता है।
इस प्रकार दोनों प्रकार के अनुक्रमण जैविक एवं अजैविक घटकों की अन्तःक्रिया के बाद ही सम्पन्न होते है।
ये अनुक्रमण प्रारंभ होने के स्थान के आधार पर निम्न प्रकार के हो सकते हैं-
1. जलारंभी अनुक्रमण- ये जलीय भागो से प्रारंभ होता है जैसे- तालाब,झील ,छिछले जलीय भागों में संपन्न होने वाले अनुक्रमण।
2. स्थलीय अनुक्रमण- स्थलीय चट्टानी भागों से प्रारंभ होने वाला अनुक्रमण या ऐसे स्थान जहाँ पर ज्वालामुखी,भूकंप आदि के द्वारा नष्ट हो चुके जैविक समुदाय के बाद प्रारंभ होने वाला अनुक्रमण।
अनुक्रमण की अवस्थाएं-
किसी भी क्षेत्र में अनुक्रमण की 6 क्रमिक अवस्थाएं पायी जाती हैं-
1.न्यूडेशन- प्रारंभ में वनस्पतिरहित क्षेत्र की अवस्था होती है।
2. प्रवासन- इसमें बाह्य जातियों का आगमन होता है।
3. आस्थापन- बीजों एवं फ़लो का अंकुरण होता है
4. प्रतिस्पर्धा- पेड़ पौधों में विकास के लिये प्रतिस्पर्धा होती है
5. प्रतिक्रिया-जैव एवं अजैव तत्वों के बीच प्रतिक्रिया होने से जैविक समुदाय तेजी से विकसित होने लगता है।
6.स्थिरीकरण- इसमें चरम समुदाय का विकास होता है।
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