नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक(CAG)-
कैग के पद का सृजन सर्वप्रथम भारत शासन अधिनियम 1919 में हुआ था लेकिन तब इसे लेखा परीक्षक के नाम से जाना जाता था स्वतंत्रता के बाद 1950 ई० में इसे नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक कहा जाने लगा। संविधान के अनुच्छेद 148 से लेकर 151 तक में कैग की नियुक्ति, कार्य तथा शक्तियों का प्रावधान है।यह भारतीय लेखा परीक्षण एवं लेखा विभाग का प्रमुख होता है इसकी भूमिका राज्य एवं केंद्र दोनों स्तरों पर होती है।
नियुक्ति-
1. अनुच्छेद 148 के तहत CAG की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
2. इसका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक होता है।
3. CAG को उसी रीति से राष्ट्रपति के आदेश द्वारा हटाया जा सकता है जैसे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को अर्थात उसे संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत के साथ सिद्ध कदाचार या असमर्थता के आधार पर प्रस्ताव पास कर हटाया जा सकता है।
कैग का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है तथा राज्यों में भी इसके अनेक कार्यालय कार्यरत हैं। कैग का वेतन-भत्ता एवं उसके कार्यालय का संपूर्ण खर्च भारत की संचित निधि पर भारित हैं एवं वेतन उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश के समान होता है।
कार्य एवं शक्तियां-
अनुच्छेद 149 में सीएजी के कार्य एवं शक्तियों का प्रावधान है जिसके अंतर्गत निम्नलिखित दो रूपों में कार्य करता है-
1. ऑडिटर के रूप में- इसके तहत उसके कार्य हैं-
० संघ एवं राज्यों की लेखाओं का परीक्षण करना।
० राष्ट्रपति की सहमति से निर्धारित करना कि संघ तथा राज्यों में लेखा की विधि, प्रारूप तथा प्रक्रिया क्या होगी।
० संघ सरकार तथा राज्य सरकार के खर्चों की निगरानी करना।
० लोक निगमों तथा सरकारी कंपनियों से संबंधित अंकेक्षण करना।
० राष्ट्रपति तथा राज्यपाल की प्रार्थना पर राज्य द्वारा वित्त पोषित न होने वाली संस्थाओं का लेखा परीक्षण करना।
० कैग लोक लेखा समिति की विभिन्न लेखा संबंधी मुद्दों पर सहायता करता है।
० अनुच्छेद 151 के अंतर्गत कैग संघ सरकार के सभी मंत्रालयो के खर्चों का लेखा जोखा कर अपनी रिपोर्ट भारत के राष्ट्रपति को देता है जिसे राष्ट्रपति दोनों सदनों के समक्ष रखवाता है तथा राज्य सरकार के सभी मंत्रालयों के खर्चों का विवरण संबंधित राज्य के राज्यपाल को सौंपता है जिसे राज्यपाल राज्य के विधान मंडल के समक्ष रखवाता है।
2. नियंत्रक के रूप में- इस रूप में भारत की संचित निधि की रखवाली का कार्य कैग दिया गया है लेकिन व्यवहारिक तौर पर आज भी उसे अधिकार नहीं दिया गया, इसलिए यह माना जाता है कि उसका पदनाम भ्रामक है।
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