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    18.6.20

    घाटी(एनाबेटिक) तथा पर्वतीय(कटाबेटिक) समीर

    घाटी(एनाबेटिक) तथा पर्वतीय(कटाबेटिक) समीर-
    एनाबेटिक तथा कटाबेटिक समीर पर्वतीय क्षेत्रों में प्रवाहित होने वाली पवनें हैं जिनकी प्रवाहित होने की दिशा में परिवर्तन रात और दिन के समय हो जाता है।
    एनाबेटिक या घाटी समीर-
    दिन के समय पर्वतीय क्षेत्रों में पर्वतों के ढाल सौर विकिरण के कारण गर्म हो जाते हैं इससे उनके संपर्क में आने वाली वायु गर्म एवं हल्की हो जाती है और यह वायु पर्वतीय ढाल के सहारे ऊपर की ओर उठने लगती है जिसे घाटी समीर कहा जाता है।
    कटाबेटिक या पर्वतीय समीर-
    सूर्यास्त के बाद पर्वतों के गर्म ढालो की ऊष्मा विकिरण द्वारा वायुमंडल में विलुप्त हो जाती है जिससे पर्वतीय ढाल ठंडे हो जाते हैं और इनके संपर्क में आने वाली वायु ठंडी एवं भारी हो जाती है यह ठंडी और भारी हवाएं ढाल के सहारे घाटी की तली की ओर बैठने लगती हैं, इन हवाओं को ही पर्वतीय समीर कहा जाता है।
    रात्रि के समय ठंडी एवं भारी वायु घाटी की तली पर पहुंचती है तो वहां पहले से उपस्थित गर्म एवं हल्की वायु को ऊपर की ओर धकेल देती है जिससे तली के समीप ठंडी एवं भारी वायु तथा ऊपरी भागों में गर्म एवं हल्की वायु पाई जाती है। इस प्रकार रात्रि के उत्तरार्ध में पर्वतीय घाटियों में तापीय विलोमता की स्थिति बन जाती है।

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