आज बढ़ते मानवीय क्रियाकलापों जैसे नगरीकरण ,औद्योगीकरण ,खनन ,पर्यटन आदि के कारण जैव विविधता को विश्व के प्रत्येक भाग में बहुत अधिक क्षति पहुंची है जिसके कारण न केवल प्रकृति को नुकसान हुआ है बल्कि मानव जीवन भी दूभर हो गया है अतः समस्त पारितंत्र एवं मानव जाति के स्वस्थ एवं सुरक्षित भविष्य के लिए जैव विविधता का संरक्षण अति आवश्यक है।
यद्यपि जैव विविधता के संरक्षण के लिए विश्व के अलग-अलग भागों में अलग-अलग उपाय किए गए हैं परंतु जैव विविधता के संरक्षण के लिए निम्नलिखित दो विधियों को विश्व स्तर पर अधिक मान्यता प्रदान की गई है जो इस प्रकार हैं-
1.इन-सीटू कंजर्वेशन (स्वस्थाने संरक्षण)
2. एक्स-सीटू कंजर्वेशन (बाह्य स्थाने संरक्षण)
इन-सीटू कंजर्वेशन-
जब संकटग्रस्त जीव-जंतुओं एवं पादपों को उनके प्राकृतिक आवासो में संरक्षित किया जाता है तो उसे स्वस्थाने संरक्षण कहते हैं। इस विधि में पादप एवं जीव जंतुओं के लिए उपस्थित प्रतिकूल परिस्थितियों का उपचार किया जाता है तथा उनके जीवन के लिए आदर्श एवं अनुकूल स्थिति बनाए रखने का प्रयास किया जाता है। इसके अंतर्गत निम्न का निर्माण किया जाता है-
०बायोस्फीयर रिजर्व
०वन्य जीव अभ्यारण
० राष्ट्री्य उद्यान
० कम्युनिटी रिजर्व
०कंजर्वेशन रिजर्व
० पवित्र झीलें व उपवन
इस विधि के लाभ-
1.यह सबसे प्रचलित और सस्ती विधि है।
2. वातावरण एवं जीव जंतुओं के बीच एक प्राकृतिक सामंजस्य बना रहता है।
3. एक साथ कई प्रजातियों को संरक्षित किया जा सकता है।
4. किसी विशेष तकनीकी की आवश्यकता नहीं होती जैसे कि बाह्यय स्थाने संरक्षण विधि मेंं होती है।
एक्स सीटू कंजर्वेशन-
जब प्राकृतिक आवासों के विखंडन, प्राकृतिक आपदाओं आदि के कारण किसी प्रजाति के लिए अपने प्राकृतिक आवास में ही अस्तित्व का संकट पैदा हो जाता है तो उस प्रजाति को उसके प्राकृतिक आवास से बाहर किसी विशेष स्थान पर संरक्षित किया जाता है तो इस विधि को बाह्य स्थाने संरक्षण कहते हैं। इस विशेष स्थान पर इस प्रजाति के लिए आवश्यक अनुकूल दशाओं का निर्माण किया जाता है ताकि वह वहां जीवित रह सके ।इस विधि में निम्न का निर्माण किया जाता है-
० चिड़ियाघर
०जंतु उद्यान
० वनस्पति उद्यान
० वन्य जीव सफारी पार्क
०जीन बैंक
० बीज बैंक
० क्रायोप्रिजर्वेशन
इस विधि के लाभ-
1. इसके द्वारा वनों में विलुप्त प्रजातियों का भी संरक्षण किया जा सकता है।
2. संवेदनशील प्रजातियोंं का भविष्य के लिए संरक्षण एवं देखभाल।
3. कृषि फसलोंं का संरक्षण एवं उनकी उत्पादकता मेंं वृद्धि।
4. निम्न तापीय परिरक्षण के द्वारा संकटग्रस्त जातियों के युग्मको को लंबे समय तक परिरक्षित रखा जा सकता है तथा उनका इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन भी किया जा सकता है।
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