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    ऋग्वेद की महत्वपूर्ण विशेषताएं

    ऋग्वेद की महत्वपूर्ण विशेषताएं-
    ऋग्वेद सबसे प्राचीन वेद है तथा इसे सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण वेद भी माना जाता है। ऋग्वेद में यज्ञों के समय की जाने वाली देवताओं की स्तुतियो का संकलन है जिनका उच्चारण करने वाला विशेषज्ञ पुरोहित होतृ या होता कहलाता था। इसी प्रकार सामवेद के विशेष ज्ञाता को उदगाता,यजुर्वेद के विशेष ज्ञाता को अघ्वर्यु तथा अथर्ववेद की विशेष ज्ञाता को ब्रह्मा कहा जाता था।
    ऋग्वेद की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं-
    1. ऋग्वेद में 10 मंडल ,1028  सूक्त तथा 10462 मंत्र या श्लोक हैं।
    2. ऋग्वेद में 2 से 7 मंडल तक प्रमाणिक एवं प्राचीन माने जाते हैं जिनमें से सातवां मंडल सर्वाधिक प्राचीन है।
    3. 2 से 7 मंडलों को ऋषि मंडल या देवमंडल या वंशमंडल कहा जाता है। इन वंशमंडलों का प्रारंभ अग्नि की स्तुति से होता है।
    4. प्रथम मंडल तथा दसवें मंडल को सबसे बाद में जोड़ा गया है।
    5. ऋग्वेद की 5 शाखाएं बताई गई है-
       ० शाकलायन
       ०वाष्कलायन
       ०आश्वलायन
       ० शांखायन 
       ०मांडूकायन
       इनमे से एकमात्र शाखा शाकलायन ही उपलब्ध होती है। इसके अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण बात यह है कि व्याकरणाचार्य पतंजलि ने ऋग्वेद की 21 शाखाओं का उल्लेख अपनी रचना में किया है।

    ऋग्वेद के मंडल:- ऋग्वेद के मंडलों से महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होती हैं जिनका विवरण इस प्रकार है-

    प्रथम मंडल- प्रथम मंडल से हमें निम्नलिखित विवरण प्राप्त होता हैं-
    1. इसमें मनु को प्रथम यज्ञकर्ता बताया गया है।
    2. कृषि संबंधी विवरण प्रथम मण्डल से ही प्राप्त होता है जिसमें मनु ने हल चलाना एवं यव(अनाज उगाना) सिखाया है।
    3. इसमें 'अश्वनी देव' को चिकित्सा एवं आयुर्विज्ञान का देव माना गया है। अश्वनी देव ने ही चवन ऋषि को नवयोवन प्रदान किया था तथा इन्होंने वीरांगना विश्पला के कटे पैर के स्थान पर नकली पैर लगा दिया था।
    4. एकेश्वरवाद की संकल्पना भी सर्वप्रथम प्रथम मंडल से ही प्राप्त होती है।

    द्वितीय मंडल-
    इस मंडल में देवताओं के राजा इंद्र और वृत्रासुर के मध्य हुए युद्ध का वर्णन है जिसमें इंद्र ने वृत्रासुर का वध करके जल(आपः) को मुक्त किया था।

    तृतीय मंडल-
    1. इस मंडल में प्रसिद्ध गायत्री मंत्र का उल्लेख है इस मंत्र के दृष्टा विश्वामित्र थे गायत्री मंत्र प्रकाश के देवता सविता तथा सवितृ को समर्पित है।
    2. इस मंडल में ही नदियों में आने वाली बाढ़ को शांत करने के लिए ऋषि विश्वामित्र द्वारा की गई प्रार्थनाओं का भी उल्लेख है।

    सातवां मंडल-
    1.दशराज्ञ युद्ध-  ऋग्वैदिककालीन सर्वाधिक महत्वपूर्ण युद्ध दसराज्ञ युद्ध का वर्णन इसी मंडल में मिलता है इस युद्ध में भरत कबीले के राजा सुदास ने दस राजाओं के संघ(जिसका नेतृत्व पुरु ने किया था) को परुषणी नदी(रावी नदी) के तट पर पराजित किया था।
    2.यह मंडल वरुण को समर्पित है तथा इसके दृष्टा महर्षि वशिष्ठ है।
    3. ध्यातव्य है कि हमारे देश  का नाम भारत,"भरत कबीले के नाम" पर ही पड़ा है।
    4. इस मंडल के मंडूक सूक्त से हमें ऋग्वैदिक कालीन शिक्षा पद्धति के बारे में जानकारी मिलती है।

    आठवां मंडल-
    1. इस मंडल को प्रज्ञात मंडल या गेयमंडल भी कहा जाता है।इसमें गेयपदों का संकलन है जिसके अधिकांश सूक्त सामवेद में भी मिलते हैं।
    2. इस मंडल की शुरुआत इंद्र की स्तुति से होती है।
    3. इस मंडल से हमें इस बात की भी जानकारी मिलती है कि ऋग्वेद की रचना में कुल 21 महिलाओं ने भाग लिया था जिसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण अगस्तय ऋषि की पत्नी लोपामुद्रा थी अन्य महिलाओं में घोषा,अपाला,विश्वरा आदि थी।

    नवां मंडल-
    1. यह मंडल वनस्पति के देवता सोम को समर्पित है।
    2. इस मंडल से ही सर्वप्रथम यह ज्ञात होता है कि ऋग्वैदिक कालीन वर्ण व्यवस्था जन्म पर आधारित न होकर कर्म पर आधारित थी।

    दशम मंडल-
    1. इस मंडल के पुरुष सूक्त में एक विराट पुरुष के अंगों से चारों वर्णों की उत्पत्ति बताई गई है जो इस प्रकार है-
      मुँह से - ब्राह्मण
      भुजा से- क्षत्रिय
      जंघा से - वैश्य
      पैरो से - शूद्र
    2. इस प्रकार पुरुष सूक्त में ही सर्वप्रथम शुद्र शब्द का प्रयोग किया गया।
    3. दशम मंडल के नदीसूक्त में 42 नदियों का वर्णन किया गया है जिसमें से 25 नदियों को दैवीय मानते हुए उनकी स्तुति की गई है। नदी सूक्त की अन्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-
       ० ऋग्वेद में सर्वाधिक बार उल्लेख सिंधु नदी का हुआ है जिसे सुषोमा या हिरण्यानी कहा गया है।
       ० ऋग्वैदिक कालीन सर्वाधिक पवित्र नदी सरस्वती है जिसे नदीतमा कहा गया है।
       ० ऋग्वेद में अन्य नदियों का भी उल्लेख मिलता है-
                    प्राचीन नाम            आधुनिक नाम
                    वितस्ता  ------------------ झेलम
                   आस्किनी  ------------------  चिनाव
                   शतुद्री-------------------- सतलुज
                   परुषणी-------------------- रावी
                   विपाशा---------------------व्यास
    इन नदियों के क्षेत्र को सप्त सैंधव कहा जाता था।
         नदी सूक्त में गंगा का उल्लेख 1 बार तथा यमुना का 3 बार हुआ है।
        ० नदी सूक्त में बताया गया है कि अफगानिस्तान में कुंभा तथा काबुल नदियां प्रवाहित होती थी।
        ० नदी सूक्त में अंतिम वर्णित नदी अफगानिस्तान में बहने वाली गोमल या गोमती नदी थी।
        
    4. दशम मंडल के नासदीय सूक्त में सर्वप्रथम निर्गुण ब्रह्म की अवधारणा मिलती है।
    5. इसी मंडल के अक्षसूक्त में द्यूत क्रीड़ा के दोषों का वर्णन किया गया है तथा एक जुआरी व्यक्ति को कृषि कार्य करने के लिए कहा गया है।

    ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ:- ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ दो है-
    1. ऐतरेय ब्राह्मण-इस ब्राह्मण ग्रंथ में ही सर्वप्रथम राजा की उत्पत्ति का सिद्धांत वर्णित किया गया है।
    2. कौषीतकि ब्राह्मण- शंकराचार्य ने ब्रह्मसूत्र में और पाणिनी ने अष्टाध्यायी में कौषीतकि ब्राह्मण का उल्लेख किया है।

    ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद है जिसके रचनाकार धनवंतरि थे

    अन्य महत्वपूर्ण तथ्य-
    1. भारतीय इतिहास के संबंध में सर्वाधिक प्राचीन अभिलेख एशिया माइनर के बोगज़कोई नामक स्थान से 1400 ईसा पूर्व का मिला है। इसमें 2 राजाओं के मध्य हुई संधि का वर्णन है जिसमें चार वैदिक कालीन देवताओं को साक्षी बताया गया है- इंद्र,वरुण,मित्र और नास्तय।

    2. ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद को वेदत्रयी में सम्मिलित किया जाता है।
    3. विभिन्न विद्वानों ने वेदों का अनुवाद अंग्रेजी भाषा में भी किया है-
        ऋग्वेद का अनुवाद-----------मैक्समूलर
        सामवेद का अनुवाद----------थियोडोर बैनफे
        यजुर्वेद का अनुवाद-----------एल्वरेज बेबर
        अथर्ववेद का अनुवाद--------- रूडोल्फ रूम, ने किया है।
        
    4. भारतवर्ष शब्द का प्राचीनतम अभिलेखीय साक्ष्य कलिंग के राजा खारवेल के हाथीगुंफा अभिलेख में मिलता है।
    5. "असतो मा सद्गमय" वाक्य के ऋग्वेद से ही लिया गया है।
    6. ऋग्वेद में गाय को अहन्या कहा गया है।
    7. ऋग्वेद में ऐसी कन्याओं को जो आजीवन अविवाहित रहती थी उन्हें हम 'अमाजू' कहा गया है।
    8. पुरु, यदु, अनु, तुर्वशु और द्रहयु ,यह आर्यों के पांच कबीले थे जिन्हें ऋग्वेद में पंचजन्य कहा गया है।
    9. ऋग्वेद में सर्वाधिक शक्तिशाली एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण देवता का दर्जा इंद्र को दिया गया है।
    10. ऋग्वैदिक काल में राजा का पद वंशानुगत होता था।

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