यजुर्वेद की महत्वपूर्ण विशेषताएं-
कर्मकांडों का वर्णन सर्वप्रथम यजुर्वेद में ही मिलता है वस्तुत यजुर्वेद कर्मकांड प्रधान वेद है। इसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. इस वेद में यज्ञ हवन को संपन्न करने के लिए सहायक मंत्रों का संकलन किया गया है जिसका उच्चारण करने वाले विशेषज्ञ ज्ञाता को अघ्वर्यु कहते थे।
2. यजुर्वेद के दो भाग हैं -कृष्ण यजुर्वेद तथा शुक्ल यजुर्वेद
पतंजलि ने यजुर्वेद की 101 शाखाओं का उल्लेख किया है जिसमें कृष्ण यजुर्वेद की 86 तथा शुक्ल यजुर्वेद की 15 शाखाएं बताई गई है।
3. कृष्ण तथा शुक्ल यजुर्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ इस प्रकार हैं-
० कृष्ण यजुर्वेद- इसके ब्राह्मण ग्रंथ तैत्तिरीय,मैत्रायणी,कठ तथा कपिष्ठल ब्राह्मण है।
० शुक्ल यजुर्वेद - इसका ब्राह्मण ग्रंथ शतपथ ब्राह्मण है।
4. शुक्ल यजुर्वेद को वाजसनेयी संहिता भी कहा जाता है इसके दृष्टा याज्ञवल्क्य हैं।
5. शुक्ल यजुर्वेद में पुरुषमेघ यज्ञ, राजसूय यज्ञ तथा बाजपेय यज्ञ आदि का वर्णन मिलता है।
6. सर्वप्रथम नक्षत्रों का उल्लेख यजुर्वेद में ही मिलता है।
7. इस वेद में आर्यों के सामाजिक तथा धार्मिक जीवन के बारे में जानकारी मिलती है।
8. यजुर्वेद की रचनाओं के नीचे गद्य में अनेक विनियोग भी दिए गए है अर्थात यह बेड गद्य एवं पद्य दोनों में रचा गया है।
9. यज्ञ में उच्चारित किये जाने वाले गद्यात्मक मंत्रों को यह 'यजुस' कहा जाता है।
10. ईशावास्यम इदं सर्वं ,वयं राष्ट्रे जाग्रयाम की संकल्पना यजुर्वेद में ही मिलती है।
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