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    24.6.20

    बौद्ध धर्म की प्रमुख विशेषताएँ

    बौद्ध धर्म की प्रमुख विशेषताएँ-
    बौद्ध धर्म की जन्मभूमि भारत है तथा इसके संस्थापक महात्मा बुद्ध है।बौद्ध धर्म व्यवहारिक होने के कारण भारत सहित दक्षिणी एशिया, पूर्वी एशिया और दक्षिणी पूर्वी एशिया आदि में अत्यधिक लोकप्रिय हुआ। बौद्ध धर्म एक नास्तिक धर्म है अर्थात यह वेदों को स्वीकार नहीं करता है।
    महात्मा बुद्ध का जीवन परिचय-
    जन्मतिथि- 563 ई०पू०
    जन्मस्थान- लुम्बिनी(कपिलवस्तु)
    बचपन का नाम- सिद्धार्थ
    पिता- शुद्धोधन,जो कि शाक्य गणराज्य के प्रमुख थे
    माता- महामाया या मायादेवी (लेकिन बुद्ध के जन्म के सातवें दिन ही महामाया का स्वर्गवास हो गया इसलिए बुध का पालन-पोषण उनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया)
    पत्नी- यशोधरा
    पुत्र- राहुल
    सिद्धार्थ के मित्र एवं सारथी - चन्ना
    प्रिय घोड़ा- कंथक
    गौतम बुद्ध एक बार अपने राज्य में भ्रमण कर रहे थे तभी निम्नलिखित चार दृश्य देखकर उनके मन में सन्यास लेने की भावना उत्पन्न हुई।यह चार दृश्य निम्नलिखित थे-
    प्रथम - बूढ़ा व्यक्ति 
    द्वितीय - बीमार व्यक्ति 
    तृतीय- मृत शरीर
    चतुर्थ - सन्यासी

    गृहत्याग- महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन के 29वें वर्ष में गृह त्याग दिया इस घटना को महाभिनिष्क्रमण कहते हैं।
    ज्ञान प्राप्ति- महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति निरंजना नदी के तट पर स्थित उरूवेला(बोधगया) में  पीपल वृक्ष के नीचे वैशाख पूर्णिमा के दिन हुई,तब से उनका नाम तथागत या बुद्ध(ज्ञानी) पड़ा।
    प्रथम उपदेश- महात्मा बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ में पांच ब्राह्मणों को दिया इस घटना को धर्मचक्र प्रवर्तन कहते हैं
    महापरिनिर्वाण- गौतम बुद्ध की मृत्यु 80 वर्ष की अवस्था में कुशीनगर में हुई इस घटना को महापरिनिर्वाण कहा जाता है।यहीं पर उन्होंने अपना अंतिम शिष्य सुभद्द नामक व्यक्ति को बनाया और उसे दीक्षा दी थी तथा अपना अंतिम उपदेश 'आनंद' को दिया था।
    बौद्ध संघ की कार्य प्रणाली-
    बौद्ध संगठन को ही बौद्ध संघ कहा जाता है गौतम बुद्ध ने संघ में प्रवेश के लिए 7 नियम बनाए थे -
    1.संघ में प्रवेश के लिए उम्र 15 वर्ष से कम न हो।
    2.उसके माता-पिता की आज्ञा आवश्यक रूप से ली गई हो।
    3. वह चोर डाकू न हो।
    4. वह अपराधी न हो।
    5. वह दास न हो।
    6. कर्जदार न हो।
    7. राजा का सेवक न हो।
    8. संक्रामक रोग ही न हो।

    बौद्ध संघ की कार्यप्रणाली गणतंत्रात्मक थी तथा बौद्ध संघ में प्रारंभिक प्रवेश को उपसंपदा कहा गया है उपसंपदा ग्रहण करने के उपरांत 3 से 4 वर्षों तक व्यक्ति का आचरणर ठीक रहने के उपरांत उसे पूर्णरूपेण भिक्षु बनाने की प्रक्रिया को प्रवज्जा या पवज्जा ग्रहण करना कहा जाता था। उपसंपदा एवं प्रवज्जा के बीच के समय को निशाय कहा गया।
    बौद्ध भिक्षुओं के लिए महीने के 4 दिवस पवित्र समझे जाते थे- दो चतुर्थी दिवस,पूर्णिमा एवं अमावस ,इन्हें सम्मिलित रूप से उपोसप सब कहा गया है अर्थात उपवास दिवस इस दिन बौद्ध भिक्षु उपवास रखते थे तथा शयनकाल में धार्मिक चर्चाएं आयोजित की जाती थी जिसमें पत्तिमोक्ख का पाठ किया जाता था।पत्तिमोक्ख अर्थात निषेध नियमों का पाठ।
    भूल स्वीकारोक्ति को पवरणा या पवारण कहा जाता था

             - बौद्ध धर्म की शिक्षाएं तथा सिद्धांत-
    बौद्ध धर्म मूलतः अनीश्वरवादी है जिसमें बुद्ध ने ईश्वर के स्थान पर मानव प्रतिष्ठा को अधिक बल दिया है।बौद्ध धर्म अनात्मवादी है इसमें आत्मा की परिकल्पना नहीं की गई है परन्तु यह पुनर्जन्म में विश्वास करता है।
    बौद्ध धर्म में जाति प्रथा एवं वर्ण व्यवस्था का विरोध किया है और बौद्ध संघ का दरवाजा प्रत्येक जाति के लिए खुला हुआ था।

    चार आर्य सत्य-
    बुद्ध के उपदेशों में सबसे महत्वपूर्ण चार आर्य सत्य को माना गया है जिसमें पूरे बौद्ध धर्म का सार निहित है-
    1.सब्बं दुःखम- इस संसार में दुख ही दुख है।
    2.दुःख समुदाय- दुख का कारण है।
    3.दुःख निरोध- दुख का निदान सम्भव है।
    4. दुःख निरोधगामिनी प्रतिपदा- अष्टांगिक मार्ग

    अष्टांगिक मार्ग-
    1. सम्यक दृष्टि
    2. सम्यक संकल्प
    3. सम्यक वाणी
    4. सम्यक कर्म
    5. सम्यक आजीव
    6. सम्यक व्यायाम
    7. सम्यक स्मृति
    8. सम्यक समाधि
    अष्टांगिक मार्ग  के अनुशीलन से व्यक्ति निर्वाण की ओर अग्रसर होता है इसके अंतर्गत बुद्ध ने अत्यधिक कायाक्लेश,मोह विलाश का प्रतिपादन करते हुए मध्यम मार्ग का उपदेश दिया।इसके अतिरिक्त बुद्ध ने सदाचार एवं नैतिकता पर भी अधिक बल दिया है।
    बौद्ध धर्म के त्रिरत्न-
    1. सम्यक प्रज्ञा
    2. सम्यक शील
    3. सम्यक समाधि

    प्रतीत्यसमुत्पाद:-
    यह बौद्ध दर्शन का मूल सिद्धान्त है, जिसका तात्पर्य है कि प्रत्येक घटना का कोई न कोई कारण अवश्य होता है।इसके अंतर्गत द्वादश निदान श्रृंखला की चर्चा की जाती है जिसमे क्रमशः एक श्रृंखला अगली का कारण बनती है।

    बौद्ध धर्म के सम्प्रदाय-
    चौथी बौद्ध संगीति में बौद्ध धर्म दो संप्रदायों में विभाजित हो गया-   हीनयान और महायान।
    हीनयान- हीनयान संप्रदाय को मारने वाले गौतम बुद्ध की मौलिक शिक्षकों में विश्वास रखते थे तथा आत्मानुशासन और पाप मुक्ति पर विशेष बल देते थे। यह मूर्ति पूजा नहीं करते थे परंतु बुद्ध के जीवन के प्रतीक चिन्हों की पूजा अवश्य करते थे।
    महायान- महायानी बुद्ध की मूर्ति पूजा करते थे कुषाण शासक कनिष्क ने इस शाखा को प्रश्रय प्रदान किया था। इस शाखा के अनुयायियों का मानना था कि पहले गौतम बुद्ध से पहले छह बुद्ध अवतरित हुए थे,सातवें बुद्ध गौतम बुद्ध थे तथा भविष्य में आठवें बुध का अवतार मैत्रेय के रूप में होगा। महायान संप्रदाय बाद में दो सम्प्रदायों अर्थात माध्यमिकवाद(शून्यवाद) और विज्ञानवाद(योगाचार्य) में विभाजित हो गया।
    नोट:- 1.शून्यवाद के संस्थापक नागार्जुन थे जबकि विज्ञानवाद के संस्थापक मैत्रेयनाथ माने जाते हैं।
    2. विज्ञानवाद की एक शाखा वज्रयान के रूप में विकसित हुई यह बौद्ध धर्म का तांत्रिक सम्प्रदाय था।

    बौद्ध धर्म के सिद्धांत:- बौद्ध धर्म की प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं-
    1.कारणवाद- इसे प्रतीत्यसमुत्पाद भी कहा जाता है जिसके अनुसार प्रत्येक घटना का कोई न कोई कारण अवश्य होता है।

    2. अनीश्वरवाद- जिसके अनुसार बौद्ध धर्म के अनुसार ईश्वर का अस्तित्व नहीं है और ना ही वह निर्वाण प्राप्ति में सहायक होता है।
     
    3. अनात्मवाद- बौद्ध धर्म में आत्मा का निषेध किया गया है जिसे अनात्मवाद कहते हैं।

    4. कर्मवाद- जिसके अनुसार व्यक्ति को कर्मों का फल अवश्य मिलता है अर्थात जीवन, मरण एवं निर्वाण की प्राप्ति कर्मों पर ही निर्भर है।

    5. क्षणभंगुरवाद- जिसके अनुसार प्रत्येक चीज हर क्षण नष्ट हो रही है और इस संसार प्रत्येक क्षण परिवर्तित हो रहा है।

    प्रमुख बोधिसत्व-
    1.अवलोकितेश्वर-पद्मपाणि:- इन्हें हाथ में कमल लिए हुए प्रदर्शित किया गया है।
    2. वज्रपाणि-  इन्हें हाथ में वज्र लिए हुए प्रदर्शित किया गया है।
    3. मंजूश्री-  इन्हें एक हाथ में पुस्तक तथा दूसरे में तलवार लिए हुए प्रदर्शित किया गया है।
    4. अमिताभ- इन्हें रौद्र रूप में प्रदर्शित किया गया है।



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