स्थायी बंदोबस्त-
अंग्रेजो का भारत में सबसे बड़ा हित आर्थिक था,जिसके अंतर्गत उनकी आय का बहुत बड़ा स्रोत भू-राजस्व था इसीलिए उन्होंने अधिक से अधिक भू-राजस्व प्राप्त करने के लिये नई भू-राजस्व प्रणालियां लागू की ,जिसमें स्थायी बंदोबस्त एक महत्वपूर्ण भू-राजस्व व्यवस्था थी जिसकी मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1.लार्ड कार्नवालिस ने भू राजस्व की स्थाई बंदोबस्त प्रणाली को लागू किया इसे इस्तमरारी,मालगुजारी,जागीरदारी,बीसवेदारी आदि नामों से भी जाना जाता है।
2.कार्नवालिस ने 1791 ई० में बंगाल में स्थाई बंदोबस्त की शुरुआत की थी जोकि प्रारंभ में बंगाल ,बिहार एवं उड़ीसा में दस वर्षीय बंदोबस्त था 1793 ईस्वी में इसे बोर्ड आफ डायरेक्टर्स की अनुमति से स्थाई कर दिया गया।
3.ये बंदोबस्त ब्रिटिश भारत के लगभग 19% क्षेत्रफ़ल पर लागू था जिसके अंतर्गत बंगाल, बिहार, उड़ीसा ,उत्तर प्रदेश का वाराणसी तथा उत्तरी कर्नाटक आता था।
4.इस व्यवस्था के अंतर्गत जमीदारों के एक नए वर्ग को भूस्वामी घोषित कर दिया गया जिन्हें भूमि के लगान का 10/11 भाग कंपनी को देना होता था तथा 1/11 भाग में अपने पास रखते थे।
5.इसके अंतर्गत भूमि को विक्रय योग्य बना दिया गया।
6.इस व्यवस्था ने सरकार तथा किसानों के बीच संबंध को समाप्त कर दिया तथा वह जमीदारों को लगान अदा करने लगे।
7.इसी व्यवस्था के अंतर्गत 1794 ईस्वी में सूर्यास्त कानून लाया गया जिसके अंतर्गत एक निश्चित तिथि को सूर्यास्त होने से पहले जमीदारों को भूमि का लगान सरकार को देना होता था नहीं तो उनकी जमीन नीलाम कर दी जाती थी।
कंपनी को स्थाई बंदोबस्त से लाभ-
1.इस व्यवस्था से कंपनी को स्थाई एवं एक निश्चित आय प्राप्त होने लगी।
2.जमींदारों के रूप में उनका एक समर्थक वर्ग तैयार हो गया।
3.सरकार भू राजस्व की वसूली के झंझटो से मुक्त हो गई जिससे वो अपना ध्यान अन्य गतिविधियों एवं क्षेत्रों में लगा सकी।
परंतु इस व्यवस्था ने किसानों की स्थिति को और भी बदतर कर दिया क्योंकि अब वह न तो जमीन के मालिक रह गए थे तथा उनसे मनमाना कर वसूल किया जाने लगा ,कर अदायगी न कर पाने के कारण जमीदार उनका विभिन्न प्रकार से शोषण करने लगे।
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