टिड्डियों का प्रकोप-
टिड्डी एक प्रवासी कीट है इसकी विभिन्न प्रजातियों में से एक रेगिस्तानी टिड्डी के झुंडों का भारत के उत्तर पश्चिमी राज्यो में राजस्थान,पंजाब, हरियाणा आदि में हमला हुआ जिससे कृषि को काफी नुकसान होने की संभावना है।
टिड्डियों के हमले की शुरुआत-
टिड्डियों के दल पाकिस्तान की सीमा के आस पास दिसंबर से ही मंडराने लगे थे लेकिन मई महीने में इनके हमलों में एकाएक वृद्धि हो गई।
संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के टिड्डी निगरानी प्रकोष्ठ ने अप्रैल में ही इस बात का अलर्ट जारी कर दिया था कि भारत में टिड्डियों का हमला हो सकता है क्योंकि उस दौरान दक्षिण- पश्चिम एशिया में टिड्डियों की संख्या में लगातार वृद्धि एवं भारत की तरफ उनका विस्तार जारी था। इनकी संख्या में गर्मी और बारिश के मौसम में अधिक वृद्धि देखी जाती है तथा टिड्डियाँ 150-200 किलोमीटर प्रति दिन के हिसाब से दूरी तय कर लेती हैं। वास्तव में इस समय टिड्डियों का जो खतरा उत्पन्न हुआ है उसकी शुरुआत हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका एवं दक्षिणी पश्चिमी एशिया के देशों से हुई है ये टिड्डी दल अफ्रीका, लाल सागर,अरब सागर एवं ईरान,पाकिस्तान को पार करते हुए भारत तक पहुंचे हैं।
भारत में टिड्डियों का प्रकोप पंजाब,हरियाणा,राजस्थान,मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में देखने को मिला है परंतु अब इनका विस्तार दक्षिणी तथा पूर्वी भारत के राज्यों तक भी हो सकता है।
टिड्डी हमले से नुकसान-
1. ये खड़ी फसलों को बर्बाद कर देती हैं।
2. खाद्य संकट पैदा हो जाता है।
3. अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव।
4. पर्यावरण को नुकसान।
5. ग्रामीण क्षेत्रों में भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो सकती है क्योंकि एक टिड्डी का दल एकबार में इतनी फसल का नुकसान कर सकता है कि उससे हजारों लोगों को भोजन दिया जा सकता है।
भारत में यद्यपि टिड्डी के हमले की जानकारी पहले ही दी गई थी परंतु इसको रोकने के भरपूर प्रयास नहीं किए गए ,साथ ही कोविड-19 महामारी के कारण इसको रोकने के पूर्व उपाय कमजोर पड़ गए। साथ ही भारत में टिड्डी नियंत्रण के बुनियादी उपकरण भी कम संख्या में हैं जैसे अल्ट्रा लो वॉल्यूम वाले स्प्रेयर की कमी, छिड़काव के लिए खास तौर पर बने विमान और ड्रोन की कमी आदि।
परंतु इस प्रकार के कीट हमलो को रोकने के लिए भारत को सभी बुनियादी उपकरण जुटाने होंगे तथा इनका समय के साथ प्रयोग करना होगा तभी इनसे निपटा जा सकता है।
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