स्क्रॉल पेंटिंग या कुंडलित चित्रकारी-
यह चित्रकारी अपनी चित्रात्मक संकल्पना, चित्रकारी की तकनीकी, रेखा चित्रण और अपनी रंग योजना के कारण अद्वतीय है।भारत के विभिन्न हिस्सों में स्क्रॉल पेंटिंग विभिन्न तरह से की जाती है यथा-
कलमकारी-आंध्रप्रदेश के श्रीकालाहस्ती और मछलीपट्नम मुख्य केंद्र है, इसमें मुख्य हस्त से चित्र निर्मित किये जाते हैं जो हिन्दू पौराणिक कथाओं से प्रेरित होते है।
कालीघाट पॉट्स- पश्चिम बंगाल,
चेरियाल चित्रकारी- तेलंगाना राज्य की देशज कलाएं है,यह नक्कासी कला का एक प्रकार है,चेरियाल को लोक गायक समुदाय द्वारा निरन्तर जारी रहने वाली कहानी की तरह चित्रित किया जाता है।
पिछवई चित्रकारी- राजस्थान
पैटकार चित्रकारी- झारखंड में आदिवासी समुदाय द्वारा
थांका चित्रकारी- सिक्किम ,लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, और अरुणाचल प्रदेश में,मुख्यतः बौद्ध धर्म से सम्बंधित है।
मंजूषा चित्रकारी- बिहार केे भागलपुर क्षेत्र से सम्बंधित इसे अंगिका कला भी कहते है, जहाँ अंग का सन्दर्भ एक महाजनपद है,किनारों पर सर्प का चित्रांकन इसकी विशेषता है।
फड़ चित्रकला- राजस्थान में मुख्य रूप से, लपेटे जाने वाले कपड़े पर की जाती है।
पिथौरा चित्रकला-यह कलाएं गुजरात औऱ मध्यप्रदेश के आदिवासी समुदायों द्वारा की जाती हैं, इनका प्रयोग अपने घरों में समृद्धि और शांति लाने के लिए घरों की दीवारों को चित्रित करने में किया जाता है।
सौरा चित्रकला- ओडिसा की सौरा जनजाति द्वारा भित्ति चित्रकारी ।
पटुआ कला- यह बंगाल की कला है, मुख्य रूप से कपड़ो पर चित्रित की जाती है और धार्मिक कहानियों को वर्णित करती है साथ ही साथ राजनीति और सामाजिक मुद्दों पर टिप्पणी करने के लिये भी इसका उपयोग किया जाता है।
मधुबनी चित्रकारी- मिथिला चित्रकारी के नाम से भी जानी जाती है, यह परंपरागत रूप से मधुबनी शहर के आसपास ग्रामीण महिलाओं द्वारा की जाने वाली चित्रकारी है। अधिकतर महिलाओं द्वारा ही पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित किया गया है, कला की मुख्य विषय वस्तु हिंदुओ के राम,कृष्ण ,दुर्गा और शिव से प्रेरित है मुख्यता इसका उपयोग मांगलिक अवसरों पर किया जाता है, चूंकि यह कला एक विशिष्ट क्षेत्र तक ही सीमित है इसलिए इसे जीआई टैग(भौगोलिक संकेत) प्राप्त है।
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