जैन सभाएं-
जैन सभाओं में जैन धर्म की शिक्षाओं का पठन-पाठन,संकलन एवं चर्चा-परिचर्चा आदि का कार्य होता था जिसमें जैन भिक्षु,भिक्षुणी और जैन विद्वान आदि भाग लेते थे।
जैन सभाओं का विवरण इस प्रकार है-
प्रथम जैन सभा-
इसका आयोजन पाटलिपुत्र में महावीर स्वामी की मृत्यु के 200 वर्ष पश्चात किया गया।इसकी अध्यक्षता आचार्य स्थूलभद्र ने की परंतु प्रथम जैन सभा में ही जैन धर्म का विभाजन दो भागों में हो गया प्रथम आचार्य स्थूलभद्र के अनुयायी श्वेतांबर कहलाए तथा द्वितीय आचार्य भद्रबाहु के अनुयायी दिगंबर कहलाए।
नोट:- द्वितीय,तृतीय एवं चतुर्थ जैनसभा के बारे में हमें अत्यल्प ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती है।
द्वितीय जैन सभा-
इसका आयोजन कलिंग राजा खारवेल के शासनकाल में सुपर्वत विजयचक्र,कलिंग(उड़ीसा) नामक स्थान पर हुआ।इस सभा में 12 अंगों का संकलन हुआ।
तृतीय जैन सभा-
इसका आयोजन 100 ई० में वेन्न नदी के किनारे वेणक़तटीपुर नामक स्थान(आंध्रप्रदेश) पर हुआ था, जिसकी अध्यक्षता आचार्य अर्हत वर्ली ने की थी ।इस जनसभा में अंगों का विवेचन किया गया।
चतुर्थ जैन सभा-
चौथी जैनसभा का आयोजन एक साथ दो स्थानों पर किया गया। मथुरा में आयोजित जैन सभा की अध्यक्षता स्कंदिल ने की तथा वल्लभी में आयोजित जैनसभा की अध्यक्षता आचार्य नागार्जुन सूरी ने की।
पाँचवी जैन सभा-
इसका आयोजन 512 ई० में वल्लभी(गुजरात) में हुआ था।इसकी अध्यक्षता देवर्षि क्षमाश्रमण ने की।इस जैन सभा में धर्मग्रंथों को अंतिम रूप से संकलित कर लिपिबद्ध किया गया।
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