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    18.6.20

    संविधान के आपातकालीन उपबंध

    संविधान के आपातकालीन उपबंध-
    भारतीय संविधान के भाग 18 में अनुच्छेद 352 से लेकर 360 तक में आपातकालीन उपबंधों का प्रावधान है। आपातकालीन उपबंध जर्मनी से लिए गए हैं जबकि इसके अंतर्गत जो अनुच्छेद रखे गए हैं वह भारत शासन अधिनियम 1935 पर आधारित है।
    संविधान में तीन आपात उपबंधों का प्रावधान है-
    1. राष्ट्रीय आपात(अनु० 352)
    2. संवैधानिक तंत्र की विफलता या राष्ट्रपति शासन(अनु० 356)
    3. वित्तीय आपात(अनु० 360)
    इन उपबंधो का विवरण एवं विवेचन इस प्रकार किया जा सकता है-
                                राष्ट्रीय आपात
    अनुच्छेद 352 के अनुसार यदि राष्ट्रपति को यह समाधान हो जाए कि भारत राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग में युद्ध ,बाहय आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है तो राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपात की उदघोषणा कर सकता है।
    अनुच्छेद 355 के अनुसार बाहय आक्रमण तथा आंतरिक अशांति से राज्य की संरक्षा करना संघ का कर्तव्य है।
    प्रमुख विशेषताएं-
    1. उद्घोषणा संबंधी प्रावधान 1 महीने के अंदर संसद के दोनों सदनों द्वारा दो तिहाई बहुमत से पारित होना आवश्यक है अन्यथा वह रद्द हो जाएगा यदि लोकसभा अस्तित्व में नहीं है तो नई लोकसभा के गठन के प्रथम बैठक के 30 दिन के अंदर उसे पारित होना चाहिए।
    2. राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा एक बार में 6 महीने के लिए की जाती है ऐसा करके उसे बढ़ाया जा सकता है।
    3.  44 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा सशस्त्र विद्रोह शब्द जोड़ा गया पहले संविधान में आंतरिक अशांति शब्द का उल्लेख था।
    4. मूल संविधान में इस बात का उल्लेख था कि साधारण बहुमत से और 2 महीने के अंदर आपातकाल संबंधी प्रस्ताव पारित होगा।
    5. आपातकाल की उद्घोषणा होने पर मौलिक अधिकार निलंबित  हो जाते हैं अनुच्छेद 358 के अंतर्गत अनुच्छेद 19 स्वतः निलंबित हो जाता है जबकि अनुच्छेद 359 के अंतर्गत शेष मौलिक अधिकारों को राष्ट्रपति एक आदेश निकालकर निलंबित करता है।
    6. 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 359(1) में यह प्रावधान किया गया है कि अनुच्छेद 20 व 21 आपातकाल में भी निलंबित नहीं होंगे।
    7. 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा यह प्रावधान भी किया गया है कि अब मंत्रिमंडल के लिखित परामर्श से ही आपातकाल की घोषणा होगी, ध्यान रहे मंत्रिमंडल शब्द का प्रयोग केवल यही एक बार हुआ है शेष स्थानों पर मंत्रिपरिषद शब्द का प्रयोग किया गया है।
    8. राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा अभी तक केवल 3 बार की गई है-
    ० 1962 में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया।
    ० 1971 में जब पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया।
    ० 26 जून 1975 को आंतरिक अशांति के आधार पर इंदिरा सरकार ने आपातकाल की घोषणा की जो 21 मार्च 1977 तक चला।
    नोट- सशस्त्र विद्रोह की उद्घोषणा होने पर नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित नहीं होते।

                       संवैधानिक तंत्र की विफलता
    इसे सामान्य रूप से राष्ट्रपति शासन भी कहा जाता है अनुच्छेद 356 में कहा गया है कि राज्यपाल की रिपोर्ट पर या अन्य किसी माध्यम से अथवा स्वयं जब राष्ट्रपति को यह समाधान हो जाए कि किसी राज्य का शासन संविधान में दिए गए प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा रहा है तो राष्ट्रपति वहां संवैधानिक तंत्र की विफलता की घोषणा कर राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है।
    मुख्य विशेषताएं-
    1. इसके अंतर्गत राष्ट्रपति राज्यपाल या अन्य किसी प्रतिनिधि के माध्यम से स्वयं शासन करता है।
    2. राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा संबंधी प्रस्ताव 2 महीने के अंदर संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग साधारण बहुमत से पारित होना आवश्यक है अन्यथा वह रद्द हो जाएगा।
    3. राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा एक बार में केवल 6 महीने के लिए की जाती है यदि इस अवधि बढ़ाना है तो पुनः प्रस्ताव का अनुमोदन कराना होगा ऐसा करके राष्ट्रपति शासन की अधिकतम अवधि 3 वर्ष तक हो सकती है।
    4. 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम,1978 द्वारा यह प्रावधान किया गया कि राष्ट्रपति शासन की अवधि 1 वर्ष से अधिक तभी बढ़ाई जा सकती है जब निर्वाचन आयोग राष्ट्रपति को यह लिखित परामर्श दे कि राज्य में राष्ट्रीय आपात जैसी स्थिति है जिसमें तत्काल चुनाव कराना संभव नहीं है।
    5. राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा होने पर राज्य सूची के किसी विषय पर कानून बनाने का अधिकार संसद को प्राप्त हो जाता है।
    6. इसके अंतर्गत नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित नहीं होते।
    7. राष्ट्रपति शासन सर्वप्रथम 1951 में पंजाब राज्य में लगाया गया था।
    8. सबसे अधिक बार राष्ट्रपति शासन का प्रयोग उत्तर प्रदेश में किया गया है।
                             वित्तीय आपात
    संविधान के अनुच्छेद 360 के अनुसार भारत राज्य क्षेत्र में अथवा उसके किसी भाग में वित्तीय स्थायित्व संकट में है तो राष्ट्रपति वित्तीय आपात की घोषणा कर सकता है।
    1. वित्तीय आपात उद्घोषणा संबंधी प्रस्ताव 2 महीने के अंदर संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग साधारण बहुमत से पारित होना आवश्यक है अन्यथा वह रद्द हो जाएगा।
    2. एक बार में वित्तीय आपात की घोषणा कितने समय के लिए की जाएगी संविधान में इसकी अवधि निर्धारित नहीं की गई है तथा इसकी निरंतरता बनाए रखने के लिए बार-बार संसद के अनुमोदन की आवश्यकता नहीं पड़ती।
    3. भारत में वित्तीय आपात की घोषणा आज तक एक बार भी नहीं हुई है।
    4. वित्तीय आपात की घोषणा होने पर देश के महत्वपूर्ण पदों पर बैठे व्यक्तियों (राष्ट्रपति को छोड़कर )जैसे उच्चतम व उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, महान्यायवादी आदि के वेतन एवं भत्ते में कटौती की जा सकती है।
    5. राज्य में वित्तीय आपात लागू होने पर राज्यपाल के वेतन में कटौती नहीं होगी परन्तु केंद्र में वित्तीय आपात पर लागू होने पर राज्यपाल के वेतन में कटौती होगी।

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