वायुदाब एवं उसकी पेटियां-
वायु के द्वारा धरातलीय सतह या सागरतल के प्रति इकाई क्षेत्र पर पड़ने वाले भार या दाब को वायुदाब कहा जाता है। वायुदाब का मापन बैरोमीटर या वायुदाबमापी द्वारा किया जाता है तथा इसकी इकाई मिलीबार होती है।
पृथ्वी पर वायुदाब के क्षैतिज वितरण का अध्ययन समदाब रेखाओं द्वारा किया जाता है ,पृथ्वी पर समान दाब वाले क्षेत्रों को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा को समदाब रेखा कहते हैं। पृथ्वी पर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाने पर वायुदाब में अंतर पाया जाता है इसी दाब प्रवणता के कारण ही पवन संचार होता है और पवन हमेशा उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की तरफ प्रवाहित होती है। सर्वाधिक वायुदाब सागरतल पर पाया जाता है।
वायुदाब को प्रभावित करने वाले कारक-
1. तापमान- वायुदाब तथा तापमान में विपरीत संबंध होता है अर्थात तापमान के अधिक होने पर वायुदाब कम होता है तथा तापमान के कम होने पर वायुदाब अधिक होता है।
2. साग़र तल से ऊँचाई- सागर तल से ऊंचाई में वृद्धि होने से वायुदाब घटता जाता है।
3. जलवाष्प- जलवाष्प वायु से हल्की होती है जिसके कारण अधिक नमी वाले क्षेत्रों में वायुदाब कम पाया जाता है।
4. पृथ्वी का घूर्णन- पृथ्वी के घूर्णन का प्रभाव वायुदाब पर पड़ता है जिसके कारण भूमध्यरेखीय क्षेत्रों में वायुदाब कम तथा ध्रुवों पर वायुदाब अधिक पाया जाता है।
इसके अतिरिक्त पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण तथा पवन संचार भी वायुदाब को प्रभावित करते हैं।
वायुदाब पेटियां-
वायुदाब के अक्षांशीय वितरण के आधार पर दोनों गोलार्द्धों में वायुदाब की 7 कटिबंध/ पेटियां पाई जाती हैं इन्हें तापजन्य एवं गतिजन्य के आधार पर दो भागों में बांट सकते हैं -
तापजन्य पेटियां- भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब तथा ध्रुवीय उच्च वायुदाब की पेटियां(इनकी संख्या 3 होती है)
गतिजन्य पेटियां- उपोषण उच्च वायुदाब तथा उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की पेटियां(इनकी संख्या 4 होती है)
वायुदाब इन पेटियों का विवरण इस प्रकार है-
भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब की पेटी-
इस पेटी का विस्तार भूमध्य रेखा के लगभग 5 अंश उत्तर तथा दक्षिणी अक्षांश के बीच पाया जाता है। विषुवत रेखा पर सूर्य की किरणें लंबवत होती हैं जिससे यहां पर तापमान अधिक होने के कारण वायु गर्म होकर ऊपर उठ जाती है और यहां पर निम्न वायुदाब क्षेत्र पाया जाता है। चूंकि इस क्षेत्र में वायुमंडलीय दशाएँ लगभग शांत होती हैं इसलिए इस शांत क्षेत्र की पेटी को डोलड्रम कहा जाता है।
उपोष्ण उच्चवायुदाब की पेटी-
एक पेटी का विस्तार दोनों गोलार्द्धों में 30 से 35 अंश अक्षांशों के मध्य पाया जाता है। पृथ्वी के घूर्णन गति के कारण उत्पन्न अभिकेंद्रीय बल के कारण भूमध्यरेखीय क्षेत्रों से ऊपर उठने वाली वायु इस क्षेत्र में अवरोहित होती है जिससे उच्च वायुदाब का निर्माण होता है। दोनों गोलार्द्धों में 30 से 35 अंश अक्षांशों को अश्व अक्षांश भी कहा जाता है।
उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की पेटी-
यह पेटी 60 से 65 अंश अक्षांशों के मध्य दोनों गोलार्द्धों में विस्तृत है।इस निम्नवायुदाब की पेटी का निर्माण पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण वायु के अभिसरण(उपोष्ण तथा ध्रुवीय उच्चवायुदाब क्षेत्र से आने वाली वायु) एवं आरोहण के कारण होता है।
ध्रुवीय उच्चवायुदाब की पेटी-
ध्रुवीय क्षेत्रों में तापजन्य उच्च वायुदाब की पेटी का विकास होता है क्योंकि यहां वर्ष भर तापमान निम्न रहता है।
सूर्य के उत्तरायण तथा दक्षिणायन होने से वायुदाब की पेटियों का भी उत्तरायण एवं दक्षिणायन होता रहता है साथ ही स्थानीय मौसमी एवं वायुमंडलीय दशाओं का प्रभाव भी इन पेटियों पर पड़ता है।
No comments:
Post a Comment