लोक वित्त/ सार्वजनिक वित्त(सरकारी प्राप्तियां,खर्च एवं घाटे)- सरकारी वित्त को लोक वित्त कहते है, इसके अंतर्गत आमतौर पर निम्न विषय चर्चा में रहते है।
(A) सरकारी प्राप्तियां (Govt. receipts)
(B) सरकारी खर्च (Govt. expenditure)
सरकारी प्राप्तियां- इन्हें दो भागों में बांटा जा सकता है
1.राजस्व प्राप्तियां
2.पूंजीगत प्राप्तियां
राजस्व प्राप्तियां- यह सरकार को मिलने वाली ऐसी आय है जिसकी उत्पत्ति के लिए सार्वजनिक सम्पतियों को कम नही करना पड़े और न ही सार्वजनिक देयताओं(Public liabilities) को बढ़ाना पड़े, तो इसे राजस्व प्राप्तियां कहते है।
नोट- सार्वजनिक संपत्ति एवं सार्वजनिक देयताओं में निम्नलिखित को शामिल किया जाता है-
सार्वजनिक संपत्ति-
1:मूल्यवान-सोना ,नकद.
2:उत्पादक-पशु,घर
3:प्रतिफल-बांड,शेयर,सावधि जमा
सार्वजनिक देयताये-
1.उधार
2. जमा
राजस्व प्राप्तियों को भी दो भागों में बांटा जा सकता है-
(a) कर राजस्व (Tax revenue)- प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करो से प्राप्त आय को सम्मिलित किया जाता है।
(b) गैर कर राजस्व (Non Tax revenue)- फीस(fees), जुर्माना(fine),ब्याज(intrest),लाभ एवं लाभांश(profits & dividends) आदि आते हैं।
पूंजीगत प्राप्तियां (Capital Receipts): ऐसी प्राप्तियां जिनकी उत्पत्ति के लिये या तो सार्वजनिक सम्पतियों (public assets) को कम करना पड़ता है या सार्वजनिक देयताओं(public liabilities) को बढ़ाना पड़ता हो तो उन्हें पूंजीगत प्राप्तियां कहते है
पूँजीगत प्राप्तियां के निम्न मुख्य उदाहरण होते है
a: विनिवेश( disinvestment)
b: ऋण की वसूली(Recovery of loans)
c: बाजार से उधार( market borrowings)
d: अन्य देयताएं(other liabilities) जैसे PF जमाये,राष्ट्रीय बचत, किसान विकास पत्र, डाकघर जमाये, सुकन्या सम्रद्धि योजना आदि।
नोट:- उपर्युक्त पूँजीगत प्राप्तियों में (a) and (b) को NDCR(Non Debt Capital Receipts-गैर ऋण पूंजीगत प्राप्तियां) कहा जाता है तथा (c) and (d) को DCR( Debt Capital Receipts- ऋण पूंजीगत प्राप्तियां) कहा जाता है।
भारत सरकार के खर्च: इन्हें दो भागों में बांटा जा सकता है-
(a) राजस्व खर्च(Revenue expenditure)
(b) पूँजीगत खर्च(capital expenditure)
राजस्व खर्च: ऐसे खर्च जो न तो सार्वजनिक संपत्ति का निर्माण करते है और न ही देयताओं को कम करते है, राजस्व खर्च कहलाते हैं। इसके निम्न मुख्य उदहारण है-
- ब्याज भुगतान
- वेतन और पेंशन
- अनुदान
- सब्सिडी
- ऋण माफी किसानों की आदि
पूँजीगत खर्च: ऐसे खर्च जिनसे या तो सार्वजनिक सम्पतियों का निर्माण होता है या सार्वजनिक देयताएं कम हो जाती है,पूँजीगत खर्च कहलाते है।
इसके मुख्य उदाहरण निम्न है
(a) किसी सार्वजनिक सम्पत्ति का निर्माण जैसे कि मेट्रो परियोजना आदि
(b) ऋणो का पुनर्भुगतान
(c) राज्य सरकारों, विदेशी सरकारों आदि को ऋण देना आदि
सरकारी घाटे:- इनका वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जाता है-
1. राजस्व घाटा(revenue deficit)- कुल राजस्व खर्चो का कुल राजस्व प्राप्तियों पर आधिक्य होना
कुल राजस्व खर्च(Total revenue expenditure)> कुल राजस्व प्राप्तियां(total revenue receipts)
2. प्रभावी राजस्व घाटा(effective revenue deficit): राजस्व घाटे में से राज्यो को दिए जाने वाले पूँजीगत अनुदानों को घटाने पर इसको प्राप्त किया जाता है।
4. राजकोषीय घाटा(fiscal deficit): कुल खर्चों का कुल प्राप्तियों पर आधिक्य, जबकि बाजार से उधार और अन्य देयताओं को पूँजीगत प्राप्तियों में सम्मिलित नहीं किया जाता है।
नोट:- भारत मे राजकोषीय घाटे की अवधारणा को 1997 में सुखमय चक्रवर्ती समिति की सिफारिशों पर लागू किया गया।
4. बजट घाटा:-कुल खर्चो का कुल प्राप्तियों पर आधिक्य जबकि पूंजीगत प्राप्तियों में बाजार से उधार और अन्य देयताओं को शामिल किया जाता है, इसे मौद्रीकृत घाटा भी कहते है क्योंकि यह घाटा मुद्रा में बदल जाता है।
5.प्राथमिक घाटा(primary deficit):-राजकोषीय घाटे में से ब्याज भुगतान (intrest payments) को घटाने पर जो प्राप्त होता है उसे प्राथमिक घाटा कहते है।
Primary deficit= Fiscal deficit- intrest payments
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