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    19.6.20

    भारत के प्रमुख पर्यावरण आंदोलन

    भारत के प्रमुख पर्यावरण आंदोलन-
    पर्यावरण आंदोलन इस बात के प्रतीक हैं कि मानव ने पर्यावरण में इस हद तक हस्तक्षेप कर दिया है कि पर्यावरण की रक्षा के लिये जनसमुदाय को आंदोलन करने पड़े हैं।ये पर्यावरणीय आंदोलन देश के विभिन्न हिस्सों में हुए हैं।
    पर्यावरण आंदोलन के मुख्य उद्देश्य-
    1.पर्यावरण के दोहन को रोकना।
    2. पर्यावरण के प्रति जन जागरूकता में वृद्धि
    3. भविष्य के विनाशकरी परिणामों के प्रति समाज एवं सरकार को सचेत करना
    4. स्वस्थ पर्यावरण को बढ़ावा
    5. विकास में सभी की समान भागीदारी हो
                               प्रमुख आंदोलन
    1.चिपको आंदोलन-यह उत्तराखंड राज्य में वनों की कटाई को रोकने के लिये 1970 के दशक में प्रारंभ हुआ।इसमें आंदोलनकारी पेड़ो से चिपक जाते थे ताकि वनकर्मी पेड़ो को न काट सकें।इसमें मुख्य भूमिका सुंदरलाल बहुगुणा,चंडी प्रसाद भट्ट एवं गौरा देवी ने निभाई।महिलाओं ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
    2. अप्पिको आंदोलन- यह चिपको आंदोलन की तरह ही था जो कर्नाटक के उत्तरी कन्नड़ क्षेत्र में 1983 में प्रारंभ हुआ।जंगलो की कटाई को रोकने के लिये लोग पेड़ो को गले से लगाते थे इसमें युवाओं,महिलाओं ने अधिक भाग लिया था।यह दक्षिण भारत में पर्यावरण के बचाव का पर्याय बन गया।
    3. साइलेंट वैली आंदोलन- केरल में कुन्तीपुझा नदी पर बनने वाले बांध के विरोध में यह आंदोलन 1980 में प्रारंभ हुआ।साइलेंट वैली जैव विविधता की दृष्टि से हॉटस्पॉट है यदि यहाँ पर बांध जैसे निर्माण कार्य होते तो पर्यावरण को बहुत क्षति पहुँचती इसलिये लोगों ने यह आंदोलन शुरू किया और सरकार को बांध परियोजना रोकनी पड़ी।
    4. टिहरी बांध विरोधी आंदोलन- टिहरी बांध उत्तराखंड में भागीरथी और भिलंगना के संगम के नीचे बनाया गया जिससे टिहरी कस्बे सहित कई गांवो के डूबने,लोगों के बड़े पैमाने पर विस्थापन,भूकंप की आवृत्ति में वृद्धि होने की आशंकाओं को लेकर यह आंदोलन प्रारंभ हुआ था।
    5. नर्मदा बचाओ आंदोलन- नर्मदा नदी पर बनने वाले बांधो से लोगों के विस्थापन,गांवो एवं कृषि भूमि के डूबने,जनजातीय समुदायों के पलायन ,पर्यावरण की अपार क्षति आदि समस्याओं को लेकर यह आंदोलन प्रारंभ हुआ था।इसमें बांध की ऊँचाई कम करने,पुनर्वास,उचित मुआवजा,विस्थापितों को योजना के लाभ में भागीदारी एवं रोजगार आदि मांगो पर ध्यान केंद्रित किया गया।इसमें मेधा पाटकर,अनिल पटेल,बाबा आम्टे आदि ने केंद्रीय भूमिका निभाई।यह देश के पर्यावरण आंदोलनों में सबसे व्यापक तथा महत्वपूर्ण आंदोलन था।
    6. बिश्नोई आंदोलन- बिश्नोई समुदाय अपने प्रकृति प्रेम के लिये प्रसिद्ध है तथा ये जीव हत्या का सदैव विरोधी रहा है।यह आंदोलन वृक्षों की कटाई को रोकने के लिये 1700 ई० में प्रारंभ हुआ था जिसमे ऋषि सोमजी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बाद में अमृता देवी ने इसको आगे बढ़ाया।
    7. जंगल बचाओ आंदोलन- यह आंदोलन 1980 में बिहार के सिंहभूम जिले(वर्तमान झारखंड)से शुरू हुआ था।इस आंदोलन का मुख्य कारण था सरकार द्वारा प्राकृतिक जंगलों को काटकर उनके स्थान पर व्यवसायिक सागौन के पेड़ो को लगाये जाने का निर्णय लेना जिसके विरोध में यहाँ के जनसमुदाय,आदिवासी खड़े हो गए बाद में यह आंदोलन झारखंड के अन्य क्षेत्रों एवं उड़ीसा आदि में फैल गया।
    8. मैती आंदोलन- इसकी शुरुआत कल्याण सिंह रावत द्वारा उत्तराखंड में की गयी जिसमें शादी के समय दूल्हा दुल्हन द्वारा वृक्षारोपण किया जाता है।वास्तव में यह एक भावनात्मक आंदोलन है जिसे जनसमुदाय का भरपूर सहयोग मिला है विशेषकर उत्तराखंड के चमोली जिले में।
    9. पश्चिमी घाट बचाओ आंदोलन- पश्चिमीघाट जैव विविधता का हॉटस्पॉट है।यहाँ चल रही विभिन्न परियोजनाओं,मानवीय हस्तक्षेप आदि के कारण पर्यावरण की अत्यधिक क्षति हुई इसलिए सामाजिक एवं पर्यावरणीय कार्यकर्ताओं तथा साहित्य-संस्कृति की हस्तियों ने पश्चिमीघाट को बचाने के लिये यह पहल आरम्भ की।यह एक सामाजिक आंदोलन का रूप ले चुका है।

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