जैविक अन्योन्यक्रिया (Biotic Interaction)-
किसी भी पारिस्थितिक तंत्र का विकास उसके जैविक समुदायों के बीच होने वाली अन्योन्यक्रियाओं पर ही निर्भर करता है। कुछ क्रियाएं एक ही प्रजाति के जीवो के मध्य होती हैं जबकि कुछ अन्य क्रियाएँ विभिन्न प्रजातियों के जीवो के मध्य होती हैं।वे क्रियाएं जो एक ही प्रजाति के जीवों के मध्य होती हैं उन्हें अंतःजातीय अन्योन्यक्रिया कहा जाता है जबकि विभिन्न प्रजातियों के जीवो के मध्य होने वाली क्रियाएं अंतरजातीय अन्योन्यक्रियाएं कही जाती है।
अन्योन्यक्रियाओं के प्रकार-
1.असहभोजिता(Amensalism)- प्रथम प्रजाति पर नकारात्मक प्रभाव जबकि दूसरी प्रजाति पर कोई प्रभाव नही पड़ता, उदाहरण पेनिसिलियम कवक व बैक्टीरिया, पेनिसिलियम पेनिसिलिन नामक एन्टीबायोटिक उत्पन्न करता है जो बैक्टीरिया के बृद्धि को रोक देता है।
2.परभक्षण(Predation)- एक प्रजाति को लाभ होता अर्थात शिकारी जबकि दूसरी प्रजाति को हानि होती है उदाहरण के तौर पर शेर द्वारा हिरन का शिकार।
3.परजीविता(Parasitism)- एक प्रजाति को लाभ मिलता जबकि दूसरी प्रजाति को हानि होती है उदहारण अमरवेल का दूसरे पौधे पर उगना।
4.स्पर्धा(competition)- इसमें दोनों प्रजातियाँ प्रभावित होती है उदहारण के तौर पर देखा जाए किसी क्षेत्र में भोजन ,आवास की समस्या होने पर दो प्रजातियों के मध्य स्पर्धा प्रारंभ हो जाती है जिससे सामान्यता दोनों को हानि पहुंचती है जैसे चूहे की कमी होने पर का बिल्ली व सांप दोनों पर प्रभाव पड़ेगा क्योंकि दोनों की निर्भरता चूहे पर होती है।
5.सहभोजिता(commendation)- इसमें एक प्रजाति को लाभ होता है एवं दूसरी प्रजाति अप्रभावित रहती उदाहरण के तौर पर चूषक मछली शार्क की सतह पर भोजन व सुरक्षा हेतु जुड़ी रहती है।
6.सहजीविता(mutualism)- दोनों प्रजातियां लाभान्वित होती है,उदाहरण लाइकेन(इसमें कवक तथा शैवाल दोनों उपस्थित होते हैं) जहाँ कवक शैवाल को सुरक्षा एवं शैवाल कवक को भोजन प्रदान करता है
7.उदासीनता(Neutralism)- यहाँ पर कोई प्रजाति एक दूसरे को प्रभावित नही करती है।
No comments:
Post a Comment