चंपारण सत्याग्रह(1917 ई०)-
चंपारण सत्याग्रह का ऐतिहासिक महत्व है क्योंकि भारत में 'सत्याग्रह' के प्रयोग का गांधी जी द्वारा किया गया यह प्रथम प्रयास था। चंपारण बिहार में स्थित था जहां पर 'तिनकठिया पद्धति' प्रचलित थी। इस पद्धति के तहत अंग्रेजों ने किसानों के साथ एक करार या समझौता कर रखा था जिसके अंतर्गत किसानों को अपनी कृषि योग्य भूमि के 3/20 वें भाग पर नील की खेती करनी होती थी।
19वीं सदी के अंत और बीसवीं सदी के प्रारंभ में रासायनिक रंगों की खोज हो गई इसके कारण नील के बाजार में गिरावट आने लगी और नील बागान मालिक अपने कारखाने बंद करने लगे परंतु उन्होंने जो करार किसानों के साथ कर रखा था उससे किसानों को मुक्त करने के लिए उन्होंने भारी लगान की मांग की चूंकि किसानों की स्थिति पहले से ही खराब थी अतः उन्होंने इस अनुचित मांग के खिलाफ विरोध प्रदर्शन प्रारंभ कर दिया।
1916 में लखनऊ में कांग्रेस के वार्षिक सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसमें गांधी जी ने भी हिस्सा लिया था, यहीं पर चंपारण के एक कृषक राजकुमार शुक्ल ने गांधी जी से मुलाकात की तथा उन्होंने चंपारण के किसानों की दशा के बारे में उन्हें बताया और समस्या का समाधान करने के लिए चंपारण आने का आग्रह किया।
राजकुमार शुक्ल के अनुरोध पर गांधीजी चंपारण पहुंचे तो वहां के अंग्रेज प्रशासन ने गांधी जी को जिला छोड़ने का आदेश जारी कर दिया परंतु गांधी ने सत्याग्रह करने की धमकी दी तब घबराकर अंग्रेजों ने इस आदेश को वापस ले लिया।
चंपारण में गांधी जी ने किसानों की वास्तविक स्थिति को समझा तथा इस आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया, गांधी जी के नेतृत्व में सभी किसान एकजुट हो गए। किसानों की एकजुटता और गांधीजी के प्रयास के चलते अंग्रेज सरकार ने जुलाई 1917 में इस मामले की जांच के लिए एक आयोग गठित किया, इसके सदस्यों में गांधीजी भी शामिल थे आयोग की सलाह पर सरकार ने तिनकठिया पद्धति को समाप्त कर दिया तथा किसानों से अवैध रूप से वसूले गए धन का 25% भाग वापस कर दिया।
इस सत्याग्रह में गांधी जी को डॉ राजेंद्र प्रसाद,बृजकिशोर,अनुग्रह नारायण सिंह,नरहरि पारिख,महादेव देसाई आदि का भरपूर सहयोग मिला।
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