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    26.11.18

    स्मृति (MEMORY): मनोविज्ञान -बाल विकास


    स्मृति का अर्थ व परिभाषा (Meaning And Definition of Memory): 

    स्मृति एक मानसिक क्रिया है, स्मृति का आधार अर्जित अनुभव है, इनका पुनरुत्पादन परिस्थिति के अनुसार होता है। इमारे बहुत से मानसिक संस्कार स्मृति के माध्यम से ही जाग्रत होते हैं।
    स्टर्ट एवं ओका’न के अनुसार– ‘स्मृति’, एक जटिल शारीरिक और मानसिक प्रक्रिया है, जिसे हम थोड़े से शब्दों में इस प्रकार स्पष्ट  कर सकते हैं। जब हम किसी वस्तु को छूते, देखते, सुनते या सूँघते हैं, तब हमारे ‘ज्ञान-वाहक तन्तु’ उस अनुभव को हमारे मस्तिष्क के ‘ज्ञान-केन्द्र’ में पहुँचा देते हैं। ‘ज्ञान-केन्द्र’ में उस अनुभव की ‘प्रतिमा’ बन जाती है, जिसे छाप’ कहते हैं। यह ‘छाप’ वास्तव में उस अनुभव का स्मृति चिनह होती है, जिसके कारण मानसिक रचना के रूप में कुछ परिवर्तन हो जाता है। यह अनुभव कुछ समय तक हमारे ‘चेतन-मन’ में रहने के बाद ‘अचेतन मन’ में चला जाता है और हम उसको भूल जाते हैं। उस अनुभव को ‘अचेतन मन में संचित रखने और ‘चेतन मन’ में लाने की प्रक्रिया को ‘स्मृति’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में, पूर्व अनुभवों को अचेतन मन में संचित रखने और आवश्यकता पड़ने पर चेतन मन में लाने की शक्ति को स्मृति कहते हैं।



    ‘स्मृति’ के सम्बन्ध में कुछ वैज्ञानिकों के विचार निम्नांकित हैं-
    1. वडवर्थ – ‘‘जो बात पहले सीखी जा चुकी है, उसे स्मरण रखना ही स्मृति है।’’
    2. रायबर्न – ‘‘अपने अनुभवों को संचित रखने और उनको प्राप्त करने के कुछ समय बाद चेतना के क्षेत्र में पुन: लाने की जो शक्ति हममें होती है, उसी को स्मृति कहते हैं।’’
    3. जेम्स – ‘‘ स्मृति उस घटना या तथ्य का ज्ञान है, जिसके बारे में हमने कुछ समय तक नहीं सोचा है, पर जिसके बारे में हमको यह चेतना है कि हम उसका पहले विचार या अनुभव कर चुके हैं।’’
    4. स्टाउट – ‘‘स्मृति एक आदर्श पुनरावृत्ति है।’’
    5. मैकडूगल – ‘‘स्मृति से तात्पर्य अतीत की घटनाओं की कल्पना करना और इस तथ्य को पहचान लेना कि ये अतीत के अनुभव है।’’
    इन परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि

    (1) स्मृति एक आदर्श पुनरावृत्ति है,

    (2) यह सीखी हुई वसतु का सीधा उपयोग है,

    (3) इसमें अतीत में घटी घटनाओं की कल्पना द्वारा पहचान की जाती है,

    (4) अतीत के अनुभवों को पुन: चेतना में लाया जाता है।

    स्मृतियों के प्रकार (Kind Of Memory)
    स्मृति का मुख्य कार्य है- हमें किसी पूर्व अनुीाव का समरण कराना। इसका अभिप्राय यह हुआ कि प्रत्येक अनुभव के लिए पृथक समृति होनी चाहिए। इतना ही नहीं, पर जैसा कि स्टाउट ने लिखा है – ‘‘ केवल नाम के लिए पृथक स्मृति नहीं होनी चाहिए, वरन् प्रत्येक विशिष्ट नाम के लिए भी पृथक् स्मृति होनी चाहिए।’’
    1. व्यक्तिगत स्मृति – इस स्मृति में हम अपने अतीत के व्यक्तिगत अनुभवों को समरण रखते हैं। हमें यह सदैव समरण रहता है कि संकट के समय हमारी सहायता किसने की थी।
    2. अव्यक्तिगत स्मृति – इस स्मृति में हम बिना व्यक्तिगत अनुभव किए बहुत-सी पिछली बातों को याद रखते हैं। हम इन अनुभवों को साधारणत: पुस्तकों से प्राप्त करते हैं। अत: ये अनुभव सब व्यक्तियों में समान होते हैं।
    3. स्थायी स्मृति – इस स्मृति में हम याद की हुई बात को कभी नहीं भूलते हैं। यह समृति, बालकों की अपेक्षा वयस्कों में अधिक होती है।
    4. तात्कालिक स्मृति – इस स्मृति में हम याद की हुई बात को तत्काल सुना देते हैं, पर हम उसको साधारणत: कुछ समय के बाद भूल जाते हैं। यह स्मृति सब व्यक्तियों में एक-सी नहीं होती है और बालकों की अपेक्षा व्यस्कों में अधिक होती है।
    5. सक्रिय स्मृति – इस स्मृति में हमें अपने पिछले अनुभवों का पुन:स्मरण करने के लिए प्रयास करना पड़ता है। वर्णनात्मक निबन्ध लिखते समय छात्रों को उससे सम्बन्धित तथ्यों का समरण करने के लिए प्रयास करना पड़ता है।
    6. निष्क्रिय स्मृति – इस स्मृति में हमें अपने पिछले अनुभवों का पुन:स्मरण करने में किसी प्रकार का प्रयास नहीं करना पड़ता है। पढ़ी हुई कहानी को सुनते समय छात्रों को उसकी घटनाएँ स्वत: याद आ जाती है।
    7. तार्किक  स्मृति – इस स्मृति में हम किसी बात को भली-भाँति सोच-समझकर और तर्वâ करके स्मरण करते हैं। इस प्रकार प्राप्त किया जाने वाला ज्ञान वास्तविक होता है।
    8. यान्त्रिक (रदन्त) स्मृति – इस स्मृति में हम किसी तथ्य को या किसी प्रश्न के उत्तर को बिना सोचे-समझे रटकर स्मरण करते हैं। पहाड़ों को याद करने और रटने की साधारण विधि यही है।
    9. आदत स्मृति – इस समृति में हम किसी कार्य को बार-बार दोहरा कर और उसे आदत का रूप देकर स्मरण करते हैं। हम उसे जितनी अधिक बार दोहराते हैं, उतनी ही अधिक उसकी समृति हो जाती है।
    10. शारीरिक स्मृति – इस स्मृति में हम अपने शरीर के किसी अंग या अंगो द्वारा किए जाने वाले कार्य को समरण रखते हैं। हमें उँगलियों से टाइप करना और हरमोनियम बजाना स्मरण रहता है।
    11. इन्द्रिय-अनुभव – इस स्मृति में हम इन्द्रियों का प्रयोग करके अतीत के अनुभवों को फिर स्मरण कर सकते हैं। हम बन्द आँखों से उन वस्तुओं को छूकर, चखकर या सूँघकर बता सकते हैं, जिनको हम जानते हैं।
    12. सच्ची या शुद्ध स्मृति – इस स्मृति में हम याद किये हुए तथ्यों का स्वतन्त्र रूप से वास्तविक पुन:स्मरण कर सकते हैं। हम जो कुछ याद करते हैं, उसका हमें क्रमबद्ध ज्ञान रहता हैं इसीलिए, इस स्मृति को सर्वोत्तम माना जाता है।

    स्मृति के नियम (Rule of Memory)
    बी.एन.झा का मत है – ‘‘स्मृति के नियम वे दशाएँ हैं, जो अनुभव के पुन:स्मरण में सहायता देती हैं।’’
    झा के इस कथन का अभिप्राय है कि हम स्मृति के नियमों को स्मरण में सहायता देने वाले नियम’ कह सकते हैं। झा के अनुसार, ये नियम 3 हैं यथा-
    1. आदत का नियम – इस नियम के अनुसार, जब हम किसी विचार को बार-बार दोहराते हैं, तब हमारे मस्तिष्क में उसकी छाप इतनी गहरी हो जाती है कि हम में बिना विचारे उसको व्यक्त करने की आदत पड़ जाती है। उदाहरणार्थ, बहुत से लोगों को अद्धे, पौने, ढइये आदि के पहाड़े रटे रहते हैं, इनको बोलते समय उनको अपनी विचार-शक्ति का प्रयोग नहीं करना पड़ता है। बी.एन.झा के शब्दों में – ‘‘इस नियम को लागू करने के लिए केवल मौखिक पुनरावृत्ति बहुत काफी है। इसका सम्बन्ध यांत्रिक स्मृति से है।’’
    2. निरन्तरता का नियम – इस नियम के अनुसार सीखने की प्रक्रिया में जो अनुभव विशेष रूप से स्पष्ट  हैं, वे हमारे मस्तिष्क में कुछ समय तक निरन्तर आते रहते हैं। अत: हमें उनको स्मरण रखने के लिए किसी प्रकार का प्रयत्न नहीं करना पड़ता है। उदाहरणार्थ, किसी मधुर संगीत को सुनने या किसी दर्दनाक घटना को देखने के बाद हम लाख प्रयत्न करने पर भी उसको भूल नहीं पाते हैं। कालिन्स व ड्रेवर के शब्दों में – ‘‘निरन्तरता का नियम तात्कालिक समृति में महत्त्वपूर्ण कार्य करता है।’’
    3. परस्पर सम्बन्ध का नियम – इस नियम को ‘साहचर्य का नियम’ भी कहते हैं। इस नियम के अनुसार जब हम एक अनुभव को दूसरे अनुभव से सम्बन्धित कर देते हैं तब उनमें से किसी एक का स्मरण होने पर हमें दूसरे का स्वयं ही स्मरण हो जाता है; उदाहरणार्थ, जो बालक गाँधीजी के जीवन से परिचित हैं, उनको सत्याग्रह के सिद्धान्तों या ‘भारत छोड़ो आन्दोलन से सरलतापूर्वक परिचित कराया जा सकता है। गाँधीजी के जीवन से इन घटनाओं का सम्बन्ध होने के कारण बालकों को एक घटना का स्मरण होने पर दूसरी घटना अपने आप याद आ जाती है। स्टर्ट एवं आकडन के अनुसार – ‘‘एक तथ्य और दूसरे तथ्यों में जितने अधिक सम्बन्ध स्थापित किये जाते हैं, उतनी ही अधिक सरलता से उस तथ्य का स्मरण होता है।’’

    स्मरण करने की विधियाँ (Method of Memory)
    मनोवैज्ञानिकों ने स्मरण करने की ऐसी अनेक विधियों की खेज की है, जिनका प्रयोग करने समय की बचत होती है। इनमें से अधिक महत्त्वपूर्ण निम्नांकित हैं-
    1. पूर्ण विधि – इस विधि में याद किए जाने वाले पूरे पाठ को आरम्भ से अन्त तक बार-बार पढ़ा जाता है। यह विधि केवल छोटे और सरल पाठों या कविताओं के ही लिए उपयुक्त है। कोलेसानिक के अनुसार – ‘‘यह विधि बड़े, बुद्धिमान और अधिक परिपक्व मस्तिष्क वाले बालकों के लिए उपयोगी है।’’
    2. खण्ड विधि – इस विधि में याद किए जाने वाले पाठ को कई खण्डों या भागों में बाँट दिया जाता है। इसके बाद उन खण्डों को एक-एक करके याद किया जाता है। इस विधि का दोष यह है कि आगे के खण्ड याद होते जाते हैं और पीछे के भूलते जाते हैं। कोलेसनिक का विचार है – ‘‘यह विधि छोटे, कम बुद्धिमान और साधारण बालकों के लिए उपयोगी है।’’
    3. मिश्रित विधि – इस विधि में पूर्ण और खण्ड विधियों का साथ-साथ याग किया जाता है। इसमें पहले पूरे पाठ को आरम्भ से अन्त तक पढ़ा जाता है। फिर उसे खण्डों में बाँटकर, उनको याद किया जाता है। अन्त में, पूरे पाठ को आरम्भ से अन्त तक फिर पढ़ा जाता है। यह विधि कुछ सीमा तक पूर्ण और खंड विधियों से अच्छी है।
    4. प्रगतिशील विधि – इस विधि में पाठ को अनेक खण्डों में विभाजित कर लिया जाता है। सर्वप्रथम, पहले खण्ड को याद किया जाता है, उसके बाद पहले और दूसरे खण्ड को साथ-साथ याद किया जाता है। फिर पहले, दूसरे और तीसरे खण्ड को याद किया जाता है। इसी प्रकार, जैसे-जैसे स्मरण करने के कार्य में प्रगति होती जाती है, वैसे-वैसे एक नया खण्ड जोड़ दिया जाता है। इस विधि का दोष यह है कि इसमें पहला खण्ड सबसे अधिक स्मरण किया जाता है और उसके बाद के क्रमश: कम।
    5. अन्तरयुक्त विधि – इस विधि में पाठ को थोड़े-थोड़े अन्तर या समय के बाद याद किया जाता है। यह अन्तर एक मिनट का भी हो सकता है और चौबीस घण्टे का भी। यह विधि ‘स्थायी स्मृति’ के लिए अति उत्तम है। वुडवर्थ का मत है– ‘‘अन्तरयुक्त विधि से स्मरण करने का सर्वोत्तम परिणाम होता है।’’
    6. अनतरहीन विधि – इस विधि में पाठ को स्मरण करने के लिए समय में अन्तर नहीं किया जाता है। यह विधि ‘अन्तरयुक्त विधि’ की उल्टी है और उससे अधिक प्रभावशाली है।
    7. सक्रिय विधि – इस विधि में समरण किये जाने वाले पाठ को बोल-बोलकर याद किया जाता है। यह विधि छोटे बच्चों के लिए अच्छी है, क्योंकि इससे उनका उच्चारण ठीक हो जाता है।
    8. निष्क्रिय विधि – यह विधि ‘सक्रिय विधि’ की उल्टी है। इसमें स्मरण किए जाने वाले पाठ को बिना बोले मन-ही-मन याद किया जाता है। यह विधि अधिक आयु वाले बालकों के लिए अच्छी है।
    9. स्वर विधि – इस विधि में याद किए जाने वाले पाठ को लय से पढ़ा जाता है। यह विधि छोटे बच्चों के लिए उपयोगी है, क्योंकि उनको गा-गाकर पढ़ने में आनन्द आता है।
    10. रटने की विधि – इस विधि में पूरे पाठ को रट लिया जात है। इस विधि से जो बातें स्मरण कर ली जाती हैं, वे अधिकांश रूप में शीघ्र ही विस्मृत हो जाती हैं।’’
    11. निरीक्षण-विधि – इस विधि में याद किए जाने वाले पाठ का पहले भली प्रकार निरीक्षण या अवलोकन कर लिया जाता है। यदि बालक को संख्याओं की कोई सूची याद करनी है, तो वह पहले इस बात का निरीक्षण कर ले कि वे निश्चित क्रम में है। इस विधि के उचित प्रयोग के विषय में वुडवर्थ ने लिखा है – ‘‘पाठ को एक बार पढ़ने के बाद उसकी रूपरेखा को और दूसरी बार उसकी विषय-वस्तु को विस्तार से याद करना चाहिए।’’
    12. क्रिया-विधि – इस विधि में समरण की जाने वाली बात को साथ-साथ किया भी जाता है। यह विधि बालक को अनेक ज्ञानेन्द्रियों को एक साथ सक्रिय रखती है। अत: उसे पाठ सरलता और शीध्रता से स्मरण हो जाता है।
    13. विचार-साहचर्य की विधि – इस विधि में स्मरण की जाने वाली बातों का ज्ञात बातों से भिन्न प्रकार से सम्बन्ध स्थापित कर लिया जाता है। ऐसा करने से स्मरण शीघ्रता से होता है और स्मरण की हुई बात बहुत समय तक याद रहती है। जेम्स का मत है – ‘‘विचार, साहचर्य उत्तम चिन्तन द्वारा उत्तम स्मरण की विधि है।’’
    14. साभिप्राय स्मरण विधि – पाठ को याद करने के लिए चाहे जिस विधि का प्रयोग किया जाये, पर यदि बालक उसको याद करने के संकल्प या निश्चय नहीं करता है, तो उसको पूर्ण सफलता नहीं मिलती है। वुडवर्थ ने ठीक ही लिखा है – ‘‘यदि कोई भी बात याद की जानी है, तो याद करने का निश्चय आवश्यक है।’’

    शिक्षक भर्ती नोट्स

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