- ओजान परत मुख्यत- जहां अवस्थित रहती है, वह है – स्ट्रेटोस्फीयर
- स्ट्रेटोस्फीयर (समतापमंडल) के निचले हिस्से में पृथ्वी से लगभग 10 से 50 किमी की ऊँचाई पर अवस्थित रहती है – ओजोन परत
- ओजोन परत पृथ्वी से करीब ऊँचाई पर है –20 किलोमीटर
- क्लोरोफ्लोरोकार्बन के लिए सत्य नहीं है – यह‘ग्रीन हाउस‘ प्रभाव में योगदान नहीं देती है
- क्लोरीन, फ्लोरीन एवं कार्बन के मानव निर्मितयौगिक हैं – CFC
- ओजोन छिद्र के लिए उत्तरदायी है – CFC
- वायुमंडल में उपस्थित ओजोन द्वारा जो विकिन अवशोषित किया जाता है, वह है – पराबैंगनी
- ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनने वाली एक गैस है – ओजोन (O3)
- ऊपरी वायुमंडल में ओजोन परत के रूप में पृथ्वी पर जीवन को बचाती है – अल्ट्रावायलेट किरणों से
- ओजोन परत मानव के लिये उपयोगी है, क्योंकि– वह सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों को पृथ्वी पर नहीं आने देती
- वायुमंडल में उपस्थित ओजोन परत अवशोषित करती है – अल्ट्रावायलेट किरणों को
- सूर्य से आने वाला हानिकारक पराबैंगनी विकिरण कारण हो सकता है –त्वचीय कैंसर का
- अधिक समय तक सूर्य के पराबैंगनी विकिरण के शरीर पर पड़ने पर हो सकता है – डीएनए में आनुवांशिक उत्परिवर्तन
- ‘ओजोन परत संरक्षण दिवस’ मनाया जाता है –16 सितंबर को
- क्लोरीन, फ्लोरीन एवं ऑक्सीजन से बना मानव निर्मित गैसीय व द्रवीय पदार्थ है जो कि रेफ्रिजरेटर तथा वातानुकूलित यंत्रों में शीतकारक के रूप में प्रयोग किया जाता है –क्लोरोफ्लोरोकार्बन
- वायुमंडल के ध्रुवीय भागों में ओजोन का निर्माण धीमी गति से होता है। अत: ओजोन के क्षरण का प्रभाव सर्वाधिक परिलक्षित होता है – ध्रुवों के ऊपर
- ओजोन परत को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाने वाला प्रदूषक है – क्लोरोफ्लोरोकार्बन
- वायुमंडल में जिसकी उपस्थिति से ओजोनास्फियर में ओजोन परत का क्षरण होता है – क्लोरोफ्लोरोकार्बन
- ओजोनपरत की क्षीणता के लिए उत्तरदायी नहीं है – विलायक के रूप में प्रयुक्त मेथिल क्लोरोफार्म
- ओजोनपरत की क्षीणता के लिए उत्तरदायी गैसें हैं – सीएफसी, हैलोजन्स, नाइट्रस ऑक्साइड,ट्राइक्लोरोएथिलीन, हैनोन-1211, 1301
- वह ग्रीन आउस र्गस जिसके द्वारा ट्रोपोस्फियर में ओजोन प्रदूषण नहीं होता है – कार्बन मोनो ऑक्साइड
- ओजोन छिद्र का निर्माण सर्वाधिक है –अंटार्कटिका के ऊपर
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल जिसके रक्षण से संबंधित है, वह है – ओजोन परत
- 1 जनवरी, 1989 से प्रभावी हुआ था –मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल संबंधित है – ओजोन परत के क्षय को रोकने से
- ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ संबंधित है –क्लोरोफ्लोरोकार्बन से
- समतापमंडल में ओजोनके स्तर को प्राकृतिक रूप से विनियमित किया जाता है –नाइट्रोजन डाइऑक्साइड द्वारा
- ओजोन परत की मोटाई मौसम के हिसाब से बदलती रहती है। बसंत ऋतु में इसकी मोटाई सबसे ज्यादा होती है तथा वर्ष ऋतु में रहती है –सबसे कम
- ओजोन परत को मापा जाता है – डॉबसन इकाई (Dobson Unit-DU) में
- 00C तथा 1 atm दाब पर शुद्ध ओजोन की 01 मिमी की मोटाई के बराबर होता है – 1 डॉबसन यूनिट
- क्लोरोफ्लोरोकार्बन, जो ओज़ोन-ह्रासक पदार्थो के रूप में चर्चित हैं, उनका प्रयोग होता है –सुघट्य फोम के निर्माण में, ऐरोसॉल कैन में दाबकारी एजेंट के रूप में तथा कुछ विशिष्ट इलेक्ट्रॉनिक अवयवों की सफाई करने में
- एक अत्यधिक स्थायी यौगिक जो वायुमंडल में 80 से 100 वर्षों तक बना रह सकता है –क्लोरोफ्लोरोकार्बन
- क्लोरोफ्लोरोकार्बन, हैलोन्स तथा कार्बन टेट्राक्लोराइड तीनों ही पदार्थ हैं –ओजोन रिक्तिकारक
- सीएफसी, हैलोन्स तथा अन्य ओजोन रिक्तिकराण रसायनों जैसे कार्बन टेट्राक्लोराइड के उत्पादन पर रोक लगाई गई है – मांट्रियल प्रोटोकॉल के अनुसार
- अंटार्कटिक क्षेत्र में ओजोन छिद्र का बनना चिंता का विषय है। इस छिद्र के बनने का संभावित कारण है – विशिष्ट ध्रुवीय वाताग्र तथा समतापमंडलीय बादलों की उपस्थिति तथा क्लोरोफ्लोरोकार्बनों का अंतर्वाह
- ऐसा माध्यम जहां क्लोरीन यौगिक ओजोन परत का विनाश करने वाले क्लोरीन कणों मे परिवर्तित हो जाते हैं – ध्रुवीयसमतापमंडलीय बादल
- फ्रिजों में जो गैस भरी जाती है, वह है – मेफ्रोन
- प्रशीतक के रूप में बड़े संयंत्रों में प्रयुक्त होती है – अमोनिया
- सर्वप्रथम वर्ष 1985 में ‘टोटल ओज़ोन मैपिंग स्पेक्ट्रोमीटर’ की मदद से अंटार्कटिका के ऊपर ओज़ोन छिद्र का पता लगाया था – ब्रिटिश दल ने
- तिब्बत पठार के ऊपर वर्ष 2005 में ‘ओज़ोन आभामंडल’ (ओजोन हैलो) का पता लगाया –जी.डब्ल्यू. केंट मूर ने
- मनुष्यों में खांसी, सीने में दर्द उत्पन्न करने के साथ-साथ फेफड़ों को भी क्षति पहुंचा सकता है – O3 का उच्च सांद्रण
- सूर्य के उच्च आवृत्ति के पराबैंगनी प्रकाश की 93-99 प्रतिशत मात्रा अवशोषित कर लेती है (जो पृथ्वी पर जीवन के लिए हानिकारक है) –ओजोन परत
- ओज़ोन का अवक्षय करने वाले पदार्थों के प्रयोगपर नियंत्रण करने और उन्हें चरणबद्ध रूप से प्रयोग-बाह्य करने (फेजि़ंग आउट) के मुद्दे से संबंद्ध हैं – मॉनिट्रयल प्रोटोकॉल
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10.10.18
GK
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