दोस्तों आज हम पर्यावरण अध्ययन ( Environmental studies ) के टॉपिक जैव-विविधता (Biodiversity ) के महत्वपूर्ण नोट्स साझा करने जा रहे हैं। इन नोट्स की हेल्प से आप आगामी CTET, TET, UPTET, व शिक्षकों की भर्ती परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन कर पाएंगे.
तो चलिए शुरू करते हैं आज भाग -3
- भारत में उत्तर पूर्व के सघन वनों में रहता है – स्लो लोरिस (Slow Loris)
- वृक्षों पर रहने वाला वह स्तनधारी जिसका जूलॉजिकल नाम ऐलुरस फल्गेंस (Ailuras Fulgens) है – रेड पांडा
- भारत में रेड पांडा प्राकृतिक रूप में पाया जाता है – उत्तर-पूर्वी भारत के उप-हिमालयी क्षेत्रों में
- यह ज्ञान के विकास और संग्रहरण के लिए तथा व्यावहारिक अनुभव का बेहतर नीतियों हेतु पक्षसमर्थन करने के लिए क्षेत्र स्तर पर कार्य करता है – वेटलैंड्स इंटरनेशलन
- राष्ट्रीय उद्यानों में आनुवंशिक विविधता का रख-रखाव किया जाता है – इन-सीटू संरक्षण द्वारा
- TRAFFIC मिशन यह सुनिश्चित करता है कि वन्य पादपों और जंतुओं के व्यापार से खतरा न हो – प्रकृति के संरक्षण को
- TRAFFIC की स्थापना वर्ष 1976 में की गई थी। यह रणनीतिकगठबंधन है – WWF एवं IUCN का
- जैव-विविधता को इस प्रकार परिभाषित किया जाता है – किसी पर्यावरण में विभिन्न प्रजातियों की श्रेणी
- जैव-विविधता अल्फा (α) , बीटा (β) तथा गामा (γ) नामक श्रेणियों में विभाजित की जाती है। यह विभाजन वर्ष 1972 में किया था –व्हिटैकर (Whittaker) ने
- जैव-विविधता का अर्थ है – एक निर्धारित क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के पादप एवं जंतु
- जैव-विविधता का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है – पारिस्थितिक तंत्र का निर्वहन
- आनुवंशिक, जाति, समुदाय व पारितंत्र के स्तर पर विभिन्न प्रकार के कार्य करके पारिस्थितिक तंत्र का निर्वहन करती है – जैव-विविधता
- जैव-विविधता के नाश का कारण है – जीवों के प्राकृतिक आवास की कमी, पर्यावरणीय प्रदूषण, वनों का नाश
- जैव-विविधता के ह्रास का मुख्य कारण है – प्राकृतिक आवासीय विनाश
- जैव-विविधता के कम होने का मुख्य कारण है – आवासीय विनाश
- संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जैव-विविधता के लिए संकट हो सकते हैं – वैश्विक तापन, आवास का विखंडन, विदेशी जाति का संक्रमण
- जैव-विविधता के लिए बड़ा खतरा है – प्राकृतिक आवासों और वनस्पति का विनाश तथा झूम खेती
- देश के पूर्वी और उत्तर-पूर्वी हिस्सों में यह खेती प्रचलित है जो कि खेती का अवैज्ञानिक तरीका है – झूम खेती
- जैव-विविधता हॉटस्पॉट स्थलों में शामिल है –पूर्वी हिमालय (Eastern Himalayas)
- भारत में जैव-विविधता के ‘ताप स्थल’ (हॉटस्पॉट) हैं – पूर्वी हिमालय व पश्चिमी घाट
- जैव-विविधता हॉटस्पॉट केवल उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में ही नहीं बल्कि पाए जाते हैं – उच्च अक्षांशीयप्रदेशों में भी
- भारत में चार जैव-विविधता हॉटस्पॉट स्थ्ाल हैं। ये हॉटस्पॉट हैं – पूर्वी हिमालय, पश्चिमी घाट, म्यांमार-भारत सीमा एवं सुंडालैण्ड
- भारत में जैव-विविधता की दृष्टि से संतृप्त क्षेत्र है – पश्चिमी घाट
- जैव-विविधता के संदर्भ में भारत में क्षेत्र ‘हॉटस्पॉट’ माना जाता है – अंडमान निकोबार द्वीप समूह
- हॉटस्पॉट शब्दों का सर्वप्रथम प्रयोग वर्ष 1988 में किया – नार्मन मायर्स ने
- जहां पर जातियों की पर्याप्तता तथा स्थानीय जातियों की अधिकता पाई जाती है लेकिन साथ ही इन जीव जातियों के अस्तित्व पर निरंतर संकट बना हुआ है। वह क्षेत्र कहलाता है – हॉटस्पॉट
- सबसे लंबा जीवित वृक्ष है – सिकाया (Sequoia)
- किसी प्रजाति को विलुप्त माना जा सकता है, जब वह अपने प्राकृतिक आवास में देखी नहीं गई है – 50 वर्ष से
- किसी प्रजाति के विलोपन के लिए उत्तरदायी है – बड़े आकार वाला शरीर, संकुचित निच (कर्मता), आनुवांशिक भिन्नता की कमी
- किसी प्रजाति के विलोपन के लिए उत्तरदायी नहीं है –व्यापकनिच(Broad Niche)
- प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधन अंतरराष्ट्रीय संरक्षण संघ (IUCN) द्वारा विलुप्ति के कगार पर खड़े संकटग्रस्त पौधों और पशु जातियों की सूचियां सम्मिलित की जाती है – रेड डाटा बुक्स में
- ‘रेड डाटा बुक’ अथवा ‘रेड लिस्ट’ से संबंधित संगठन है – आई.यू.सी.एन.
- प्राणी समूह जो संकटापन्न जातियों के संवर्ग के अंतर्गत आता है – महान भारतीय सारंग, कस्तूरी मृग, लाल पांडा और एशियाई वन्य गधा
- सोन चिरैया या महान भारतीय सारंग (Great Indian Bustard), साइवेरियन सारस और सलेटी टिअहरी (Sociable lapwing) अति संकटग्रस्त श्रेणी में, कस्तूरी मृग संकटग्रस्त श्रेणी में और एशियाई वन्य गधा संकट के नजदीक (Near Threatened) श्रेणी में जबकि लाल पांडा शामिल है – संकटग्रस्त श्रेणी में
- गोल्डन ओरिओल, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, इंडियन फैनटेल पिजियन तथा इंडियन सनबर्ड भारतीय पक्षियों में से अत्यधिक संकटापन्न किस्म है –ग्रेट इंडियन बस्टर्ड
- यद्यपि भारत की जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है, किन्तु पक्षियों की संख्या तेजी से घट रही है, क्योंकि – पक्षियों के वास स्थान पर बड़े पैमाने पर कटौती हुई है, कीटनाशक रासायनिक उर्वकरण तथा मच्छर भगाने वाली दवाओं का बड़े पैमाने पर उपयोग हो रहा है
- उत्तराखण्ड में जैव-विविधता के ह्रास का कारण नहीं है – बंजर भूमिका वनीकरण
- सड़कों का विस्तार, नगरीकरण एवं कृषि का विस्तार उत्तरदायी कारकों में शामिल हैं – जैव-विविधता के ह्रास के लिए
- वर्ष1975 में यह भारत का अभिन्न अंग बन गया था। इसे वनस्पति शास्त्रियों का स्वर्ग माना जाता है – सिक्किम
- पूर्वी हिमालय के हॉटस्पॉट क्षेत्र में आता है – सिक्किम
- जैव-विविधता के साथ-साथ मनुष्य के परंपरागत जीवन के संरक्षण के लिए सबसे महत्वपूर्ण रणनीति जिस एक की स्थापना करने में निहित है, वह है – जीवमंडल निचय (रिज़र्व)
- जैव विविधता के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण रणनीति है – जैवमंडल रिजर्व
- वह स्थल जो वनस्पिति संरक्षण हेतु स्वस्थान पद्धति (in-situ) नहीं है – वानस्पतिक उद्यान
- क्रायो बैंक ‘एक्स-सीटू’ संरक्षण के लिए जो गैस सामान्यत: प्रयोग होती है, वह है – नाइट्रोजन
- वनस्पतियों एवं जानवरों की विलुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण उनके प्राकृतिक आवास से पृथक किया जाता है – एक्स-सीटू सरंक्षण द्वारा
- सर्वाधिक जैव-विविधता पाई जाती है – उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों में
- उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों का विस्तार पाया जाता है – 100उ. तथा 100द. अक्षांशों के मध्य
- इन क्षेत्रों में पादप तथा प्राणियों के विकास तथा वृद्धि के लिए अनुकूलतम दशाएं पायी जाती हैं, क्योंकि इसमें वर्ष भर रहता है – उच्च वर्षा तथा तापमान
- किसी निश्चत भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों की संख्या तथा उनकी विविधता को कहा जाता है – जैव-विविधता
- सर्वाधिक जैव-विविधता पायी जाती है – उष्णकटिबंधीय वर्षा वन बायोम
- प्राणियों और पादपों की जातियों में अधिकतम विविधता मिलती है – उष्ण कटिबंध के आर्द्र वनों में
- जैव-विविधता में परिवर्तन होता है, क्योंकि यह – भूमध्य रेखा की तरु बढ़ती है
- सर्वाधिक जैव-विविधता पाई जाती है – उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में
- शान्त घाटी, कश्मीर, सुरमा घाटी तथा फूलों की घाटी में से सर्वाधिक जैव-विविधता पाई जाती है – शान्त घाटी में
- ‘शान्त घाटी’ अवस्थित है – केरल में
- ‘साइलेंट वैली परियोजना’ जिस राज्य से संबंधितहै, वह है – केरल
- ‘फूलों की घाटी’ अवस्थित है – उत्तराखण्ड में
- आर्द्र क्षेत्रों में जिन्हें रामसर का दर्जा प्राप्त है – चिल्का झील, लोकटक, केवलादेव तथा वूलर झील
- रामसर सूची अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्र भूमियों की सूची है। इस सूची में वर्तमान में भारत के शामिल स्थल हैं – कुल 26 स्थल
- रामसर कन्वेन्शन के अंतर्गत रामसर स्थल है – भोज आर्द्र स्थल
- रामसर सम्मेलन संरक्षण से संबंधित था – नम भूमि के
- वेटलैंड दिवस मनाया जाता है – 2 फरवरी को
- भारत की सबसे बड़ी अंतर्देशीय लवणीय आर्द्रभूमि – गुजरात में
- जीवमंडल आरक्षित परिरक्षण क्षेत्र है – आनुवंशिक विभिन्नता के क्षेत्र
- प्रवाल-विरंजन का सबसे अधिक प्रभावी कारक हैं – सागरीय जल के सामान्य तापमान में वृद्धि
- प्रवाल-विरंजन समुद्री तापमान और अम्लता में वृद्धि, वैश्विक ऊष्मन सहित पर्यावरण दबाव के कारण होता है जिससे सहजीवी शैवाल का मोचन और साथ ही घटित होती हैं – प्रवालों की मृत्यु
- जिनमें प्रवाल-भित्तियां हैं – अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, कच्छ की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी
- सर्वप्रथम ‘बायोडायवर्सिटी’ शब्द का प्रयोग किया था – वाल्टर जी. रोसेन ने
- जैव-विविधता जिन माध्यम/माध्यमों द्वारा मानव अस्तित्व का आधार बनी हुई है –मृदा निर्माण, मृदा अपरदन की रोकथाम, अपशिष्ट का पुन:चक्रण, शस्य परागण
- संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 2011-20 के लिए दशक निर्दिष्ट किया है –जैव-विविधता दशक
- पारिस्थितक तंत्र की जैव-विविधता की बढ़ोतरी के लिए उत्तरदायी नहीं है – पोषण स्तरों की कम संख्या
- पारिस्थितिकी तंत्र होता है – एक गतिकीय तंत्र
- हिमालय पर्वतप्रदेश जाति विविधता की दृष्टि से अत्यन्त संमृद्ध हैं। इस समृद्धि के लिए जो कारण सबसे उपयुक्त है, वह है – यह विभिन्न जीव-भौगोलिक क्षेत्रोंका संगम है
- भारतीय संसद द्वारा जैव-विविधता अधिनियम पारित किया गया – दिसंबर 2002 में
- ‘भारतीय राष्ट्रीय जैविक-विविधता प्राधिकरण’ स्थापित किया गया – वर्ष 2003, चैन्नई (तमिलनाडु) में
- राष्ट्रीय जैव-विविधता प्राधिकरण भारत में कृषि संरक्षण में सहायकहै, यह – जैव चोरी को रोकता है तथा देशी और परंपरागत आनुवंशिक संसाधनों का संरक्षण करता है, एन.बी.ए. की अनुशंसा के बिना आनुवंशिक/जैविक संसाधनोंसे संबंधित बौद्धिकसंपदा अधिकार हेतु आवेदन नहीं किया जा सकता है।
- सीवकथोर्न के विश्वव्यापी मार्केट की बड़ी सम्भावनाएं हैं। इस पेड़ के बेर में विटामिन और पोषक तत्व प्रचुर होते हैं। चंगेज खां ने इसका प्रयोग अपनी सेना की ऊर्जस्विता को उन्नत करने के लिए किया था। रूसी कॉस्मोनाटों ने इसकेतेल को कास्मिक विकिरण से बचाव के लिए किया था। भारत में यह पौधा पाया जाता है –लद्दाख में
- भारत सरकार ‘सीबकथोर्न’की खेती को प्रोत्साहित कर रही है। इस पादप का महत्व है –यह मृदा-क्षरण के नियंत्रण में सहायक है और मरुस्थलीकरण को रोकता है। इसमें पोषकीय मान होता है और यह उच्च तुंगता वाले ठंडे क्षेत्रों में जीवित रहने के लिए भली-भांति अनुकूलित होता है।
- भारत में लेह बेरी के नाम से लोकप्रिय एक पर्णपाती झाड़ी है – सीबकथोर्न
- पिछले दस वर्षों में बिद्धों की संख्या में एकाएक बिरावट आई है। इसके लिए उत्तरदायी कारण एक साधारण सी दर्द निवारक दवा है, जिसका उपयोग किसानों द्वारा पशुओं के लिए दर्द निवारक के रूप में एवं बुखार के इलाज में किया जाता ह। वह दवा है – डिक्लाफिनेक सोडियम
- भारत में गिद्धों की कमी का अत्यधिक प्रमुख कारण है – जानवरों को दर्द निवारक देना
- कुछ वर्ष पहले तक गिद्ध भारतीय देहातों में आमतौर से दिखाई देते थे, किंतु आजकलकभी-कभार ही नजर आते हैं। इस स्थिति के लिए उत्तरदायी है – गोपशु मालिकों द्वारा रुग्ण पशुओं के लिए उपचार हेतु प्रयुक्त एक औषधि
- मॉरीशस में एक वृक्ष प्रजाति प्रजनन में असफल रही, क्योंकि एक फल खाने वाला पक्षी विलुप्त हो गया, वह पक्षी था – डोडा
- मॉरीशस में टम्बलाकोक (Tambalacoque), जिसे डोडा वृक्ष के नाम से भी जाना जाता है, प्रजनन में असफल रहा, जिसकी वजह से यह लगभग विलुप्त हो रहा है। इसका मुख्य कारण है – डोडो पक्षी की विलुप्ति
- भारतीय वन्य जीवन के सन्दर्भ में उड्उयन वल्गुल (फ्लाइंग फॉक्स) है – चमगादड़
- ‘ग्रेटर इंडियन फ्रूट बैट’ (Greater Indian Fruit Bat) के नाम से भी जाना जाता है – इंडियन फ्लाइंग फॉक्स
- डुगोन्ग नामक समुद्री जीव जो कि विलोपन की कगार पर है वह है एक – स्तरधारी (मैमल)
- भारत में पाये जाने वाले स्तनधारी ‘ड्यूगोंग’ के संदर्भ में सही है/हैं – यह एक शाकाहारी समुद्री जानवर है, इसे वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची । के अधीन विधिक संरक्षण दिया गया है।
- यह एक समुद्रीस्तनधारी है और घास खाने की इनकी आदत के कारण इन्हें ‘समुद्री गाय’ भी कहा जाता है – ड्यूगोंग
- जिन तीन मानकों के आधार पर पश्चिमी घाट-श्रीलंका एवं इंडो-बर्मा क्षेत्रों को जैव-विविधता के प्रखर स्थलों (हॉटस्पॉट्स) के रूप में मान्यता प्राप्त हुई है, वे हैं – जाति बहुतायता (स्पीशीज़ रिचनेस) स्थानिकता तथा आशंका बोध
- ‘बर्डलाइफ इंटरनेशनल’ (BirdLife International) नामक संगठन के संदर्भ में कथन सही है – यह संरक्षण संगठनों की विश्वव्यापी भागीदारी है, यह ‘महत्वपूर्ण पक्षी एवं जैवविविधता क्षेत्र'(इम्पॉर्टैन्ट बर्ड एवं बॉयोडाइवर्सिटि एरियाज़)’ के रूप में ज्ञात/निर्दिष्ट स्थलों की पहचान करता है।
- जैव-विविधता हॉटस्पॉट की संकल्पता दी गई थी – ब्रिटिश पर्यावरणविद् नॉर्मन मायर्स द्वारा
- जैव-सुरक्षा पर कार्टाजेना उपसंधि (प्रोटोकॉल) के पक्षकारों की प्रथम बैठक (MOP) 23-27 फरवरी, 2004 के मध्य सम्पन्न हुई थी – मलेशिया की राजधानी क्वालालम्पुर में
- भारत ने जैव-सुरक्षा उपसंधि (प्रोटोकॉल)/जैव-विविधता पर समझौते पर हस्ताक्षर किया था। – 23 जनवरी, 2001 को
- जैव-सुरक्षा उपसंधि (प्रोटोकॉल) संबद्ध है – आनुवंशिक रूपांतरित जीवों से
- जैव-सुरक्षा उपसंधि/जैव-विविधता पर समझौते का सदस्य नहीं है – संयुक्त राज्य अमेरिका
- जैव-सुरक्षा (बायो-सेफ्टी) का कार्टाजेना प्रोटोकॉल कार्यान्वित करता है – पर्यावरणएवं वन मंत्रालय
- बलुई और लवणीय क्षेत्रएक भारतीय पशु जाति का प्राकृतिक आवास है। उस क्षेत्र में उस पशु के कोई परभक्षी नहीं है किंतु आवास ध्वंस होने के कारण उसका अस्तित्व खतरे में है। यह पशु है – भारतीय वन्य गधा
- जैव-विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनके दलों का दसवां सम्मेलन आयोजित किया गया था – नगोया में
- जैव-विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दलों का ग्यारहवां सम्मेलन (CoP-11) 8-11 October 2012 के मध्य आयोजित किया गया – हैदराबाद, भारत में
- UN-REDD+ प्रोग्राम की समुचित अभिकल्पना और प्रभावी कार्यान्वयन महत्वपूर्ण रूप से योगदान दे सकते हैं – जैव-विविधता का संरक्षण करने में वन्य पारिस्थितिकी की समुत्थानशीलता में तथा गरीबी कम करने में
- दो महत्वपूर्ण नदियां जिनमेंसे एक का स्रोत झारखंड में है (और जो उड़ीसा में दूसरे नाम से जानी जाती है) तथा दूसरी जिसका स्रोत उड़ीसा में है – समुद्र में प्रवाह करनेसे पूर्व एक ऐसे स्थान पर संगम करती हैं, जो बंगाल की खाड़ी से कुछ ही दूर है। यह वन्य जीवन तथा जैव-विविधता का प्रमुख स्थल है और सुरक्षित क्षेत्र है। वह स्थल है – भितरकनिका
- प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय संघ (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कन्जर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज़) (IUCN) तथा वन्य प्राणिजात एवं वनस्पतिजात की संकटापन्न स्पीशीज़ के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एन्डेंजर्ड स्पीशीज़ ऑफ वाइल्ड फॉना एंड फ्लोरा) (CITES) के संदर्भ में सही है – IUCN, प्राकृतिक पर्यावरण के बेहतर पर्यावरण के बेहतर प्रबंधन के लिए, विश्व भर में हजारों क्षेत्र-परियोजनाएं चलाता है। CITES उन राज्यों पर वैध रूप से आबद्धकर है जो इसमें शामिल हुए हैं,लेकिन यह कन्वेंशन राष्ट्रीय विधियों का स्थान नहीं लेता है।
- IUCN, एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो प्रकृति संरक्षण एवं प्राकृतिक संसाधनों के सतत प्रयोग के क्षेत्र में कार्यरत है। यह अंग नहीं है – संयुक्त राष्ट्र का
- ‘पारितंत्र एवं जैव-विविधता का अर्थतंत्र’ (The Economics of Ecosystems and Biodiversity-TEEB) नामक पहल के संदर्भ में सही है/हैं – यह एक विश्वव्यापी पहल है, जो जैव-विविधता के आर्थिक लाभों के प्रति ध्यान आकषित करने पर केंद्रित है। यह ऐसा उपागम प्रस्तुत करता है, जो पारितंत्रों और जैव-विविधता के मूल्य की पहचान, निदर्शन और अभिग्रहण में निर्णयकर्ताओं की सहायता कर सकता है।
- TEEB, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme) के अंतर्गत कार्य करने वाली संस्था है। इसका कार्यालय है – जेनेवा, स्विट्जरलैंड में
- सिंह-पुच्छी वानर (मॅकाक) अपने प्राकृतिक आवास में पाया जाता है – तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक में
- भारत में प्राकृतिक रूप में पाए जाते हैं – काली गर्दन वाला सारस (कृष्णग्रीव सारस), उड़न गिलहरी (कंदली), हिम तेंदुआ
- चीता को भारत से विलुप्त घोषित किया गया था – वर्ष 1952 में
- समुद्र तल से 3000-4500 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है – हिम तेंदुआ
- जम्मू एवं कश्मीर का राज्य पक्षी है – काली गर्दन वाला सारस
- भारत में सर्वाधिक उड़न गिलहरी हैं – हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में
- शीतनिष्क्रियता की परिघटना का प्रेक्षिण कियाजा सकता है – चमगादड़, भालू कृंतक (रोडेन्ट) में
- समशीतोष्ण (Temperate) और शीतप्रधान देशों में रहने वाले जीवों की उस निष्क्रिय तथा अवसन्न अवस्था को जिसमें वहां के अनेक प्राणी जाड़े की ऋतु बिताते हैं। कहते हैं – शीतनिष्क्रियता (Hybernation)
- गिलहरियां (Squirrels), छदूंदर (Must Rats), चूहे (Rats), मूषक (Mice) आदि स्तनधारी प्राणी आते हैं – कृंतक (Rodents) गण में
- उच्चतर अक्षांशों की तुलना में जैव-विविधतासामान्यत- अधिक होती है – निम्नतर अक्षांशों में
- पर्वतीय प्रवणताओं (ग्रेडिएन्ट्स) में उच्चतर उन्नतांशों की तुलना में जैव-विविधता सामान्यत: अधिक होती है – निम्नतर अक्षांशों में
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पाया जाता है – लवण जल मगर
- अंडमान और निकोबार के समुद्री जीव-जन्तुओं में डूगॉग्स, डॉल्फिन, व्हेल, साल्ट वाटर समुद्री कछुआ, समुद्री सांप आदि आमान्य रूप से बहुतायत से पाए जाते हैं। विशाल हिमालय श्रृंखला में पाए जाते हैं – श्रूएवं टैपीर
- ‘वेटलैंड्स इंटरनेशलन’ एक गैर-सरकारी एवं गैर-लाभकारी वैश्विक संगठन है जो आर्द्रभूमियों एवं उनके संसाधनों को बनाए रखने तथा उन्हें पुन: स्थापित करने हेतु कार्यरत हैं। इसका मुख्यालय स्थित है – नीदरलैंड्स में
- भारत रामसर अभिसमय (Ramsar Convention) का एक पक्षकार है और उसने बहुत से क्षेत्रों को रामसर स्थल घोषित किया है। वह कथन जो इस अभिसमय के संदर्भ में सर्वोत्तम रूप से बताता है कि इन स्थलों का अनुरक्षण कैसेकिया जाना चाहिए – इन सभी स्थलों का, पारिस्थितिकी तंत्र उपागम से संरक्षण किया जाए और साथ-साथ उनके धारणीय उपयोग की अनुमति दी जाए
- भारत रामसर अभिसमयका एक पक्षकार है और उसने बहुत से क्षेत्रों को रामसर स्थल घोषित किया है ताकि इन सभी स्थलों का, पारिस्थितिकी तंत्र उपागम से संरक्षण किया जाए और साथ-साथ अनुमति दी जाए। – उनके धारणीय उपयोग की
- यदि अंतरराष्ट्रीय महत्व की किसी आर्द्रभूमि को ‘मॉन्ट्रियो रिकॉर्ड’ के अधीन लाया जाए, तो इससे अभिप्राय है – मानव हस्तक्षेप के परिणाम स्वरूप आर्द्रभूमि में पारिस्थितिक स्वरूप में परिवर्तन हो गया है, हो रहा है या होना संभावित है।
- पारिस्थितिकीय निकाय के रूप में आर्द्र भूमि (बरसाती जमीन) उपयोगी है – पोषक पुनर्प्राप्ति एवं चक्रण हेतु पौधों द्वारा अवशोषण के माध्यम से भारी धातुओं को अवमुक्त करने हेतु, तलछट रोक कर नदियों का गादीकरण कम करने हेतु
- जलीय तथा शुष्क स्थलीय पारिस्थितिकीय तंत्रके बीच के क्षेत्र कहलाते हैं – आर्द्र भू-क्षेत्र
- आर्द्रभूमि के अंतर्गत देश का कुल भौगोलिक क्षेत्र अन्य राज्यों की तुलना में अधिक अंकित है – गुजरात में
- भारत में तटीय आर्द्रभूमि का कुल भौगोलिक क्षेत्र, आंतरिक आर्द्रभूमि के कुल भौगोलिक क्षेत्र से – कम है
- जैव द्रव्यमान का वार्षिक उत्पादन न्यूनतम होता है – गहरे सागर में
- जैव द्रव्यमान के उत्पादन की दृष्टि से प्रथम स्थान पर आते हैं – उष्णकटिबंधीय वर्षा वन
- ‘टुमारोज बायोडायवर्सिटी’ पुस्तक की लेखिका हैं – वंदना शिवा
- जैव-विविधता से संबंध रखते हैं – खाद्य एवं कृषि हेतु पादप आनुवंशिक संसाधनों के विषय में अंतरराष्ट्रीय संधि, मरुभवन का सामना करने हेतु संयुक्त राष्ट्र अभिसमय, विश्व विरासत अभिसमय
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